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बचपन की वो दोस्त साथ होती अगर....

जब मैं 5वीं क्लास में पढ़ती थी तो अचानक हमारे क्लास में एक दिन हमलोगों से उम्र में काफी बड़ी लड़की को देखकर हम हैरान रह गए.

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School Children
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जब मैं 5वीं क्लास में पढ़ती थी तो अचानक हमारे क्लास में एक दिन हमलोगों से उम्र में काफी बड़ी लड़की को देखकर हम हैरान रह गए. सांवला सा चेहरा, माथे पर सिंदूर, हाथ में चूड़ि‍यां - वह बिल्कुल एक शादीशुदा महिला की तरह लग रही थी. बस साड़ी की जगह स्कूल के ड्रेस में थी.

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अमूमन स्कूल में जब कोई नया स्टूडेंट एडमिशन लेता था तो हम लोग उससे जल्द से जल्द बातें करना शुरू कर देते थे लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं था. उल्टा हम लोग इस विचार में रहते थे कि उसे कैसे परेशान किया जाए कि वह स्कूल छोड़कर चली जाए. वह हमेशा पढ़ती रहती थी. हमारे क्लास में ज्यादातर बच्चे समाज के तथाकथित ऊंची जाति से ही आते थे और वह एक दलित परिवार से थी.

इस कारण से भी हमलोगों में काफी दूरी रहती थी. न तो हम उसके साथ बैठकर लंच ही करते थे और न ही चॉकलेट शेयर करते थे. जैसे ही जनवरी का महीना शुरू हुआ स्कूल में गणतंत्र दिवस की तैयारियां शुरू हो गई. हमलोगों ने संगीत-नृत्य में भाग लिया और उसने भी लिया, जो हमें गवारा नहीं था. लेकिन जब तैयारी शुरू हुई तो इस दौरान हमने बातचीत शुरू कर दी. वह सारी लड़कियों की अपेक्षा अच्छा नाचती और गाती थी. हर नृत्य में उसे मुख्य भूमिका में रखा गया था.

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26 जनवरी के दिन प्रोग्राम शुरू हुआ, लोगों की भीड़ हमारे स्कूल में जुट चुकी थी. पहला नृत्य 'ये देश है वीर जवानों का' पर था. उसने इस गीत पर ऐसी परफॉर्मेंस दी थी कि दूसरे दिन गांव में सिर्फ उसी के चर्चे हो रहे थे लेकिन ये चर्चे पॉजिटिव कम निगेटिव ज्यादा था. सब हमारे स्कूल के डायरेक्टर को दोष दे रहे थे कि किसी शादीशुदा दलित लड़की को स्टेज पर लाना कहां तक उचित था?

मगर उस दिन के बाद वो हमलोगों की सबसे फेवरेट हो गई थी. हम सब साथ ही खाना खाने लगे थे लेकिन छुप-छुप कर क्योंकि डर लगता था कि अगर किसी ने हमारे घर में बता दिया तो क्या होगा? जबकि सच्चाई तो यह थी कि मेरे घर में जात-पात नहीं माना जाता था फिर भी मेरे अंदर यह चीज घर कर चुकी थी कि हमारे समाज के मुताबिक हम और वो एक जैसे नहीं हैं.

इसी बीच उसका गौणा होने वाला था. हमलोगों ने सोचा कि वह तो ससुराल जा रही है तो उसको गिफ्ट के रूप में क्या देना चाहिए और हमलोग उसके घर तक कैसे पहुंचेगे क्योंकि हमारे कई सहेलियों के घरवालों ने उसके घर जाने से साफ मना कर दिया था. लेकिन हमलोगों ने ठान लिया था कि हम उसके घर जरूर जाएंगे और सारी सहेलियां इस बात पर राजी हो गईं थी कि हम जाएंगे लेकिन उसके घर पर कुछ नहीं खाएंगे.

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हमलोगों ने उसे गिफ्ट देने के लिए चूड़ियां, लिपिस्टिक और कॉपियां खरीदी थीं. हम तब इतने बड़े नहीं हुए थे कि यह सोच सकें कि वह अपने ससुराल जा रही है और आगे नहीं पढ़ेगी तो इन कॉपियों का उसके लिए अब कोई मतलब नहीं है. हम जैसे ही उसके घर पहुंचे, वह दौड़कर हमारी तरफ आई, अपने कमरे ले गई. वहां बहुत सारी मिठाइयां रखी हुई थी, उसने हमें खाने को बोला लेकिन हममें से सबने बहाना बना दिया. मुझे याद है कि वह समझ चुकी थी हम खाने से क्यों मना कर रहे हैं, उसकी आंखें भर आईं थी. मुझसे उसका यह चेहरा देखा नहीं जा रहा था मैं अपने आपको अपराधी समझ रही थी और यह अपराध बोध पूरी जीवन मुझपर हावी ही रहेगा.

लेकिन सलाम है मेरी उस बहादुर सहेली को कि जिसने ससुराल में भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. दो बच्चों की मां होने के बावजूद उसने 12वीं पास किया और ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया. मेरे पास आज उसका कोई कॉन्टेक्ट नंबर नहीं है लेकिन मैं जानती हूं कि वह जहां कहीं भी होगी अपने साथ दूसरों की जिंदगी भी और बेहतर बनाने में जुटी होगी.

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