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गोवा विलय: जब भारत के हमले से हैरान रह गया था पुर्तगाल, करना पड़ा था सरेंडर

भारत का छोटा सा सुंदर राज्य गोवा पुर्तगाल के कब्जे में था. 1947 में भारत को स्वाधीनता मिलने के बाद पुर्तगाली सरकार ने अपने इलाकों को कांग्रेस को सौंपने से इनकार कर दिया. कूटनीतिक स्तर पर पंडित नेहरू बार-बार पुर्तगाल से इन इलाकों को सौंपने का अनुरोध करते रहे. लेकिन पुर्तगाली सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई.

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गोवा की आजादी के लिए लगे पोस्टर
गोवा की आजादी के लिए लगे पोस्टर

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  • आजादी के 14 साल बाद स्वतंत्र हुआ गोवा
  • पुर्तगाल का उपनिवेश थे गोवा, दमन दीव
समुद्र तट की खूबसूरती का एहसास कराने वाला गोवा भी 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हुआ था. इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के जरिए अंग्रेजों ने अपने कब्जे की जमीन भारत को सौंपने की घोषणा की, लेकिन तब भारत के कुछ हिस्से पुर्तगाल के कब्जे में थे. ये क्षेत्र गोवा, दमन दीव, दादर और नागर हवेली थे.

नेहरू की कूटनीतिक प्रयासों को पुर्तगालियों ने नहीं माना

भारत का छोटा सा सुंदर राज्य गोवा पुर्तगाल के कब्जे में था. 1947 में भारत को स्वाधीनता मिलने के बाद पुर्तगाली सरकार ने अपने इलाकों को कांग्रेस को सौंपने से इनकार कर दिया. कूटनीतिक स्तर पर पंडित नेहरू बार-बार पुर्तगाल से इन इलाकों को सौंपने का अनुरोध करते रहे. लेकिन पुर्तगाली सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई. गोवा शहर पर 1510 से ही पुर्तगालियों का कब्जा था. पुर्तगालियों ने तर्क दिया कि जब उन्होंने गोवा पर कब्जा किया था तो भारत गणराज्य अस्तित्व में ही नहीं था.

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तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन पुर्तगाल से बार-बार मित्रवत अनुरोध करते रहे, लेकिन बात नहीं बनी. अब भारत के सामने सैन्य कार्रवाई ही एक मात्र विकल्प था. उस वक्त दमन दीव भी गोवा का हिस्सा था.

1954 में आजाद हुआ दादर नागर हवेली

2 अगस्त 1954 में गोवा की राष्ट्रवादी ताकतों ने दादर और नागर हवेली की बस्तियों पर कब्जा कर लिया और भारत समर्थित स्थानीय सरकार की स्थापना की. 1954 से 1961 तक दादर और नागर हवेली का प्रशासन नागरिकों की संस्था वरिष्ठ पंचायत ने संभाला. 1961 में दादर और नागर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया.

इसके बाद पुर्तगाल शासित बाकी प्रदेशों के लिए आर्थिक प्रतिबंध शुरू कर दिए गए. इधर दादरा और नागर हवेली छिनने के बाद पुर्तगाली बौखला दिए. पुर्तगालियों ने बाकी इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी. पुर्तगाल ने अफ्रीकी देश अंगोला और मोजाम्बिक से और सेना बुलवाई. गोवा दमन और दीव में 8000 यूरोपियन, अफ्रीकन और भारतीय सैनिक तैनात कर दिए गए.

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दिसंबर 1961 में भारत के सामने गोवा को हासिल करने के लिए सैन्य कार्रवाई के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया. इसी के साथ भारत ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया.

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'शांतिप्रिय' भारत के हमले से पुर्तगाली घबराए

गोवा अभियान में एयर एक्शन की जिम्मेदारी एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो के जिम्मे थी. अरब सागर में भारतीय बमबर्षक विमान मंडराने लगे. भारतीय सेना ने 2 दिसंबर 1961 को 'गोवा मुक्ति' अभियान शुरू कर दिया. वायुसेना ने सटीक हमले किए और पुर्तगाली ठिकानों को नष्ट कर दिया. दमन में पुर्तगालियों के खिलाफ मराठा लाइट इंफैंट्री ने मोर्चा संभाला.

वायुसेना के बमबर्षक विमानों ने पुर्तगालियों के ठिकाने मोती दमन किले पर हमला कर पुर्तगालियों के होश उड़ा दिए. दीव में राजपूत और मद्रास रेजिमेंट ने पुर्तगालियों पर हमला बोला. नौसेना के युद्धपोत आईएनएस दिल्ली ने पुर्तगाल के समुद्री किनारों पर हमला किया. पुर्तगाल को शांतिप्रिय भारत से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी,

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19 दिसंबर, 1961 को तत्कालीन पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया. इस तरह परतंत्रता के लंबे कालखंड के बाद गोवा और दमन दीव ने आजाद हवा में सांस ली और इस क्षेत्र से 451 साल पुराने औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ. ऑपरेशन विजय में 30 पुर्तगाली सैनिक मारे गए थे, जबकि 22 भारतीय जवानों ने गोवा को शहीद कराने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. रिपोर्ट के मुताबिक इस ऑपरेशन में 57 पुर्तगाली सैनिक जख्मी हुए थे, जबकि जख्मी भारतीय सैनिकों की संख्या 54 थी.

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