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Sorry... हम आपके बच्चे को नहीं बचा पाए, ना कहने की हिम्मत ना हुई कोशिश!

Sorry... हम आपके बच्चे को नहीं बचा पाए, ये कहने की हिम्मत न तो BRD मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में होगी, ना ही वो इसे अपनी जिम्मेदारी मानते होंगे?

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गोरखपुर अस्पताल में मौत से कोहराम
गोरखपुर अस्पताल में मौत से कोहराम

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Sorry... हम आपके बच्चे को नहीं बचा पाए, ये कहने की हिम्मत न तो BRD मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में होगी, ना ही वो इसे अपनी जिम्मेदारी मानते होंगे? 48 घंटे में 30 से ज्यादा मासूमों ने दम तोड़ दिया, और महज 6 दिनों में ये आंकड़ा 63 तक पहुंच गया. लेकिन अब भी सरकार लीपा-पोती में जुटी है, किसी भी सरकार के लिए इससे ज्यादा कोई शर्मनाक वाकया नहीं हो सकता.

हां... अब शायद कई अधिकारी नपेंगे, जांच बिठाई जाएगी, कमेटियां बनेंगी, इस्तीफे भी होंगे. संभव है, सड़क पर विरोध से लेकर कैंडल मार्च भी निकाला जाएगा. लेकिन उन मांओं का क्या जो अपने चिराग को इस उम्मीद के साथ गोरखपुर के इस जानलेवा अस्पताल में लेकर पहुंची थी, कि चंद घंटे में उसका लाल बोल उठेगा, और फिर उनकी जिंदगी रोशन हो जाएगी. पर अफसोस, उन मांओं की गोद में उस बेजान मासूम को सौंप दिया गया, जिस चेहरे को देखकर मां का कलेजा कांप उठा. पर सरकार को इससे क्या? वैसे भी गरीब की मौत तो हमेशा से आंकड़ों में उलझकर ही रह जाती है. 

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दरअसल आंसुओं की पहले ही कोई कीमत नहीं थी, और जब ये किसी गरीब का हो तब तो कोई देखता भी नहीं, पूछता भी नहीं. गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में पिछले 6 दिनों में 63 बच्चों के मां-बाप, चाचा, ताऊ.. भले बिलख रहे हों. लेकिन सच मानिए उन्हें अपने आंसुओं को खुद पोछना होगा, खुद इस दुख से निकलना होगा. क्योंकि इस सूबे की सरकार से उम्मीदें तो बहुत थी, लेकिन वही अब मामले को दफनाने में जुटी है. जिस अस्पताल में लगातार मासूम दम तोड़ रहे थे, परिजन बिलख रहे थे, कईयों की दुनिया ही उजड़ गई, उनके लिए तो अब BRD अस्पताल बस एक मौत की बिल्डिंग बनकर रह गई.

जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन इस लापरवाही से योगी सरकार अपना पीछा नहीं छुड़ा सकती है. भले ही अब सरकार 2-2 लाख रुपये मुआवजा देकर मृतकों के परिजनों में 69 लाख रुपये बांट दे. लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी की 69 लाख रुपये वक्त पर ना देकर मासूमों की जिंदगी छीन ली गई. शायद, अस्पताल में अब तक मरीजों की सांसें उधार पर टिकी थी.

इस घटना को हम लापरवाही नहीं कह सकते. ये एक जघन्य अपराध है, जो जान-बूझकर किया गया, बिना परिणाम की परवाह किए. यही सोच दिल्ली में एम्स और सफदरजंग अस्पताल के प्रशासनों आ जाए तो क्या होगा? ये सवाल भर है, क्योंकि जितने बड़े अस्पताल होते हैं मरीजों को उससे उतनी ही जिंदगी की उम्मीदें होती हैं. इसलिए एम्स और सफदरजंग में ऐसा कभी नहीं होगा, इन्हें अपनी जिम्मेदारी का पता है. लेकिन गोरखपुर के इस अस्पताल ने ऑक्सीजन कंपनी का उधार चुकाने के बजाय बच्चों की जिंदगी ही दांव पर लगा दी.

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पिछले 6 महीने में योगी सरकार ने सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए ताबड़तोड़ फैसले लिए. बूचड़खाने बंद करने से लेकर 'वंदे मातरम' जबर्दस्ती गंवाने पर पूरी ताकत झोंक दी. लेकिन इस गोरखपुर की घटना ने साबित कर दिया कि केवल फरमान जारी करने से सिस्टम नहीं बदलते. बदलाव के लिए रणनीति और उसे लागू करने के लिए हर कड़ी को बेहतर करने की जरूरत होती है. इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है. जिम्मेदारी सरकारी की भी बनती है और उसे बिना लाग-लपेट स्वीकार भी करना चाहिए, ताकि उन मांओं को पता चले कि उसके मासूम ने ऑक्सीजन की कमी से नहीं, सरकारी सिस्टम की वजह से दम तोड़ दिया. साथ ही सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि आगे इस तरह की घटनाएं ना हो, और यही उन बेगुनाह मासूमों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

 

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