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केंद्र ने SC से पूछा- चीफ जस्टिस का रिश्तेदार कैसे बन गया हाई कोर्ट का जज

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बना कॉलेजियम सिस्टम विफल और अपारदर्शी साबित हुआ है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बना कॉलेजियम सिस्टम विफल और अपारदर्शी साबित हुआ है. सरकार ने सर्वोच्च अदालत में यह भी पूछा कि देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस की नजदीकी रिश्तेदार 59 वर्षीय महिला कैसे कलकत्ता हाई कोर्ट की जज नियुक्त कर दी गई.

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जज की आपत्ति‍ को किया गया था नजरअंदाज
दरअसल, 2010 में जस्टिस कबीर की बहन कबीर सिन्हा शुक्ला को कलकत्ता हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. इस मामले में हाई कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस भट्टाचार्य की आपत्त‍ि को नजरअंदाज कर दिया था. सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहती ने कहा हाई कोर्ट के कॉलेजियम के पांच जजों में से एक ने इसका विरोध किया था और बाकायदा पत्र भी लिखा था. लेकिन चूंकि उन्होंने महिला वकील की जज के तौर पर नियुक्ति का उनकी उम्र और शैक्षणिक काबिलियत के आधार पर विरोध किया था इसलिए सर्वोच्च अदालत तक उनके पहुंचने के रास्ते बंद कर दिए गए.

सरकार ने बोला कॉलेजियम सिस्टम पर हमला
रोहतगी ने कहा कि कॉलेजियम का तरीका असफल रहा है क्योंकि यह अपारदर्शी तंत्र है जिसने लोकतंत्र का गला घोंटा है. अटॉर्नी जनरल के कॉलेजियम सिस्टम पर हमला बोलने और 1993 के फैसले की वृहत पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की मांग किए जाने पर शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि वह उनकी दलील समाप्त होने से पहले भी इस मामले पर फैसला कर सकती है. राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिका पर पांच न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष दलील जारी रखते हुए उन्होंने कहा, नई व्यवस्था को वापस लाए जाने से आज लोकतंत्र वापस आ गया है.

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पारदर्शी नहीं है सिस्टम
रोहतगी का कहना है कि कि पिछली व्यवस्था में पारदर्शिता का अभाव था जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि आरटीआई कानून के तहत भी कॉलेजियम प्रणाली के काम करने पर समूची सूचना सामने नहीं आ रही है. न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश की राय को सर्वोपरि रखे जाने के शीर्ष अदालत के 1993 के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करने पर पीठ ने उनसे सवाल किए हैं. अटॉर्नी जनरल ने न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा, आरटीआई के जमाने में क्यों कोई भी कॉलेजियम के फैसलों को जानने के पक्ष में नहीं है? उन्होंने मांग की कि मामले को 1993 में फैसला सुनाने वाले नौ न्यायाधीशों की पीठ से अधिक बड़ी पीठ के पास भेजा जाए. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक खास व्यवस्था को न्यायपालिका की स्वतंत्रता का आधार नहीं कहा जा सकता, जो संविधान के तहत कई चेक एंड बैलेंस के अधीन है और नये कानून ने प्रक्रिया में लोकतंत्र को बहाल किया है.

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