मोदी सरकार के रुख से ऐसा लगता है कि वह ब्लैकमनी के मसले पर एकदम गंभीर है. सरकार ने उन 'सिफारिशों' को सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें ब्लैकमनी बिल 'कमजोर करने' की बात कही गई थी.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, उद्योग जगत से जुड़ी लॉबी सरकार पर इस बात का दवाब बना रही थी वह ब्लैकमनी बिल को कमजोर कर दे या फिर इसे छोड़ ही दे. साथ ही एक मांग यह भी थी कि 1 लाख रुपये से अधिक के ट्रांजेक्शन पर पैन का उपयोग अनिवार्य न किया जाए. कहा जा रहा है कि इस मांग को कुछ सांसदों का भी समर्थन हासिल था.
अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में यह रिपोर्ट छपी है. रिपोर्ट के मुताबिक, सिफारिश करने वालों में कई सेक्टर से जुड़े लोग थे, जिन्होंने मंत्रियों तक अपनी बात पहुंचाई. पैन की अनिवार्यता लागू न करने के पक्ष में दलील दी गई कि देश में अभी भी एक बड़ी आबादी के पास पैन नहीं है. इसके जवाब में यह तर्क दिया गया कि सरकार पैन जारी करने के लिए उसी तरह का अभियान चलाएगी, जैसा कि बैंक खाते खोलने के लिए जनधन योजना चलाई गई.
कुल मिलाकर, ब्लैकमनी को लेकर सरकार कतई ढिलाई बरतने के मूड में नहीं है. सरकार के दावों से ऐसा लगता है कि वह अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कुछ और ठोस कदम उठा सकती है.