महंगाई पर काबू के लिए सरकार अपने खर्च में कटौती कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और भारतीय रिजर्व बैंक के नीतिगत दरों को कड़ा करने से मुद्रास्फीति पर नियंत्रण में खास मदद नहीं मिलेगी.
वैश्विक अनुसंधान फर्म मूडीज ने शुक्रवार को यह बात कही. मूडीज के विश्लेषण में कहा गया है, ‘भारत महंगाई के मोर्चे पर पिछले एक दशक की सबसे बुरी स्थिति का सामना कर रहा है. चूंकि केंद्रीय बैंक अल्प अवधि में इसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकता, इसलिए सरकार को इसमें बड़ी भूमिका निभानी होगी.’
मूडीज ने कहा कि सिर्फ ब्याज दरें बढ़ाकर मौद्रिक प्रसार की गति को धीमा करने से इस समस्या का हल नहीं होने वाला. अनुसंधान फर्म ने कहा कि मई माह में बैंक ऋण और मुद्रा आपूर्ति की वृद्धि दर क्रमश: 18.8 प्रतिशत और 15.1 प्रतिशत रही जो काफी सुस्त कही जा सकती है. लेकिन खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने तथा आयात महंगा होने से उपभोक्ता मुद्रास्फीति माह के दौरान 13.9 फीसदी रही.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी के विनिवेश की पहल की है, पर उसे खर्च और उधारी पर लगाम लगाने की जरूरत है, बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि केंद्र और राज्यों का कुल राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के दस प्रतिशत के आसपास पहुंच चुका है. मूडीज ने कहा कि वित्तीय मितव्यता से कीमतों में कमी आएगी और दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था के विकास की संभावनाएं बढ़ेगी.