कम बारिश इस बार अर्थव्यवस्था और महंगाई पर भी असर डाल सकती है. इस साल 93 फीसदी के बजाय 88 फीसदी मानसून के पूर्वानुमान से सरकार के हाथ पांव फूल गए हैं. 5 जून तक केरल में मानसून के पहुंचने का अनुमान है और इससे पहले ही सूखे का संकट गहराने के आसार बढ़ गए हैं.
भारत में इस साल दीर्घावधि की औसत बारिश का महज 88 फीसदी बारिश होने का अनुमान है. यह जानकारी मंगलवार को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने दी. हर्षवर्धन ने कहा, 'उत्तर पश्चिम क्षेत्र में सामान्य (औसत) बारिश का महज 88 फीसदी बारिश होगी.'
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी मंगलवार को कहा कि देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून उम्मीद पर खरा नहीं उतरा तो एक बार फिर खाद्य कीमतें आसमान छूने लगेंगी. इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी) के आंकलन का हवाला देते हुए राजन ने कहा कि मौसम वैज्ञानिकों को कमजोर मानसून की आशंका दिखाई दे रही है लिहाजा केन्द्र सरकार को देश में खाद्य संतुलन बनाने की जरूरत है जिससे महंगाई को लगाम रख सके.वर्धन ने कहा, ‘मुझे भारी दिल से कहना पड़ रहा है कि हमारे संशोधित अनुमान के मुताबिक भारत में 88 फीसदी बारिश होगी, जो अप्रैल के 93 फीसदी के अनुमान से कम है.' भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अप्रैल में देश में सामान्य बारिश 93 फीसदी रहने की संभावना जताई थी.
PM की है मौसम पर नजर
हर्षवर्धन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौसम में हो रहे बदलाव पर बराबर नजर रख रहे हैं. उन्होंने सभी संबंधित मंत्रियों को जरूरी तैयारियां करने और कदम उठाने के निर्देश दिए हैं, ताकि आम जनता को परेशानी न हो.
मौसम विज्ञान विभाग ने भी मानसून के ‘कमजोर’ रहने की आशंका जताई है . भारतीय मौसम विभाग ने अप्रैल में अनुमान व्यक्त किया था कि मानसूनी बारिश औसतन 93 फीसदी रहेगी जो ‘सामान्य से कम’ श्रेणी में आती है. अब 88 फीसदी अनुमान के साथ मानसून को ‘कमजोर’ रहने की श्रेणी में रखा गया है.
मंत्री ने कहा, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि अनुमान सही हैं. लेकिन इस बार हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि संशोधित अनुमान सही न हों.’ उन्होंने कहा कि पिछली बार कैबिनेट की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न मंत्रियों और विभागों से कहा था कि इस तरह की आपदा से निपटने के लिए तैयार रहें.
किसानों के लिए बुरी खबर
अनुमान के मुताबिक प्रभावित इलाके में उत्तर-पश्चिम भारत शामिल होगा जिसमें दिल्ली एनसीआर, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान आते हैं और यहां करीब 85 फीसदी बारिश होगी. क्षेत्र में पिछले वर्ष भी कम बारिश हुई थी. कम बारिश का अनुमान अल-नीनो के कारण हो सकता है जिससे देश के कुछ इलाकों में सूखे जैसी स्थिति पैदा होने की संभावना है.
मानसून में देरी होने के साथ ही किसानों के लिए यह खबर दुखदायी हो सकती है जो मौसमी बारिश पर काफी निर्भर रहते हैं. धान जैसे खरीफ फसल की बुवाई के लिए दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का समय पर आना जरूरी है और बारिश की कमी के कारण कीमतों में उछाल आ सकता है.
कृषि क्षेत्र में देश की करीब 60 फीसदी आबादी को रोजगार मिलता है जो मानसून पर काफी निर्भर है क्योंकि केवल 40 फीसदी कृषि योग्य भूमि सिंचाई के तहत आती है. पिछले वर्ष देश में 12 फीसदी कम बारिश हुई थी जिससे अन्न, कपास और तिलहन का उत्पादन प्रभावित हुआ था.
खराब मानसून के कारण वित्त वर्ष 2014-15 में कृषि का विकास 0.2 फीसदी रहा. सरकार के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014-15 के फसल वर्ष (जुलाई-जून) में खाद्यान्नों का उत्पादन घटकर 251.12 मिलियन टन रहा था जबकि उसके पिछले साल रिकॉर्ड 265 . 04 मिलियन टन उत्पादन हुआ था.
(इनपुट: भाषा)