सांसदों द्वारा निजी एयरलाइंस से खास सुविधाएं मांगे जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. सरकार इस मसले पर अब बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है.
सांसद खास हैं या आम, यह बहस इन दिनों एविएशन फील्ड में जगह-जगह छिड़ी हुई है. जहां सांसद खुद को आम हवाई यात्री से ऊंचा और खास दिखाने की जुगत में हैं, वहीं लोग इस पर उंगलियां उठा रहे हैं. अब तक सरकारी एयरलाइंस यानी एयर इंडिया सांसदों को कुछ खास सुविधाएं देती है, मसलन-
-एयरपोर्ट लाउंज के इस्तेमाल की सुविधा.
-मुफ्त खान-पान.
-चेक-इन में वरीयता
-सामान के लिए कुली की सुविधा.
-उड़ान में देरी की अग्रिम जानकारी जैसी सुविधाएं.
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि अपने रुतबे का इस्तेमाल कर सांसद कई बार और कई मनमानी सुविधाएं ले लेते हैं. इस बारे में लोगों की राय भी काफी अलग-अलग है. कुछ जानकार इसे सही ठहराकर इसका समर्थन भी करते हैं, लेकिन यह भी कहते हैं कि यह सरकार या डीजीसीए के कहने से नहीं होता है.
पूर्व डीजीसीए कानू गोहेन ने कहा, 'अगर कुछ कर्टसी मिलती है, तो क्या गलत है? अगर यह नहीं मिलती, तो ऐसा सवाल उठना चाहिए. लेकिन मेरे खयाल से सरकार या डीजीसीए के कहने से यह सब नहीं होता.'
दूसरी तरफ एक काफी बड़ा वर्ग सांसदों को खास सुविधाएं दिए जाने के खिलाफ है और इसका पुरजोर विरोध करता है. उड्डयन विशेषज्ञ हर्षवर्धन कहते हैं, 'ये राजे-रजवाड़ों वाली और खुद को दूसरों से अलग और खास दिखाने की कोशिश है. ये गलत है.'
वहीं सरकार इस मामले पर खुद को घिरता देख बैकफुट पर आ गई है. सरकार अब इस बात तक से इनकार कर रही है कि उसने निजी एयरलाइंस को सांसदों को खास सुविधाएं देने को कभी कही भी है.
नागरिक उड्डयन मंत्री अजीत सिंह ने कहा, 'हमने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है. वैसे भी एयरलाइंस बहुत से लोगों, जैसे जज, वीसी आदि को पहले से कुछ सुविधाएं देती आई है, तो सिर्फ सांसदों के लिए यह नहीं हैं...लेकिन हमने कोई आदेश नहीं दिया है.'
चुनावी मौसम में जब हर कोई आम आदमी के साथ खड़ा दिखना चाहता है, ऐसे में आम आदमी से जुदा दिखने की यह कोशिश क्या अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा नहीं है? इस मामले में बहस अभी जारी ही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर सांसदों को आम यात्री की तरह सफर करने से इतना परहेज क्यों हैं?