उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनाव के नतीजों ने चौंका दिया है. त्रिपुरा विजय के कुछ दिन के भीतर ही हुए इन दोनों सीटों पर उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी को हक्का-बक्का कर दिया. इनमें 1 सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दबदबे वाली थी तो दूसरे ने प्रदेश को उपमुख्यमंत्री दिया. यूपी में मोदी लहर ने विधानसभा चुनाव में अपना परचम फहराया, लेकिन महज एक साल में ऐसा क्या हो गया कि 2 सबसे प्रमुख सीटों पर बीजेपी ने अपनी साख खो दी. गोरखपुर में हमने बीजेपी की हार के उन कारणों को समझने की कोशिश की जिसने योगी की साख पर उनके ही घर में बट्टा लगा दिया.
1. शहर का वोटर घर से नहीं निकला
शहर के बीचोबीच चाय की चौपाल से बेहतर राजनीति करने और समझने की कोई जगह हो ही नहीं सकती. गोरखपुर में पराग जैसे चाय वाले राजनीति के हर पहलू को हर दिन होने वाली चौपाल की चर्चा से भाप लेते हैं. पराग कहते हैं कि गोरखपुर में चाय का जायका इसलिए खराब हो गया क्योंकि कोई वोट देने गया ही नहीं. गोरखपुर के बनिया, ब्राह्मण और ठाकुर कुछ ज्यादा ही सुख-सुविधा पा गए और इसलिए वह योगी को भूल गए.
पराग जैसे गोरखपुर शहर के और भी कई लोग हैं जो इन नतीजों पर अपनी राय रखते हैं. विनय कुमार का कहना है कि बीजेपी के उम्मीदवार उम्मीद से ज्यादा आश्वस्त थे कि गोरखपुर में BJP का राज है और हर हाल में वही जीतेगी. निकाय चुनाव में बीजेपी के कई पार्षद और वार्ड चुनाव जीते, लेकिन उप चुनाव के दौरान किसी ने भी न चौपाल लगाई न प्रचार-प्रसार में दिखाई पड़े. बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता वोट डलवाने भी नहीं आए.
2. रोजगार मुहैया कराने में विफल
गोरखपुर के गांवों में बीजेपी की हार की वजह जानने पर एक अलग तस्वीर नजर आई. ग्रामीण युवाओं का कहना है कि लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया. इसलिए उनमें नाराजगी थी. रेत बालू और मिट्टी के कारोबार से जुड़े योगी सरकार के फैसलों के चलते स्थानीय स्तर पर गरीबों को बहुत मुश्किल हुई जिसकी वजह से ग्रामीण इलाकों में जनता में नाराजगी रही. इससे गरीब जनता को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा.
3. मायावती का जादू कायम
बसपा के समर्थक रमेश कुमार का कहना था कि बसपा का 100 प्रतिशत वोट गोरखपुर के उप चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को गया. हमने यह भी पूछा कि आखिर अपने धुर विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने में क्या उन्हें असहजता महसूस नहीं हुई जिसके जवाब में रमेश ने कहा कि उन्होंने सिर्फ और सिर्फ बहन जी के आदेश का पालन करते हुए बसपा के वोटर ने सपा को वोट दे दिया. उनका यह भी आरोप है कि बीजेपी की जुमलेबाजी से भी लोग परेशान हो गए हैं. बेरोजगारी की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है.
4. जातीय समीकरण ने भेदा योगी का किला
गोरखपुर के पिपराइच गांव में निषाद समाज के लोग भी रहते हैं और उनका आरोप है कि योगी सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया. योगी सरकार ने निषाद समाज के लिए और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ नहीं किया. शिकायतों के अलावा रही सही कसर सपा और बसपा के गठबंधन के बाद उपजे जातीय समीकरण ने पूरी कर दी जिससे BJP को गोरखपुर में इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और जिस समाजवादी पार्टी के लिए गोरखपुर में बहुत ज्यादा संभावनाएं नहीं थी, वह भी योगी का किला भेदने में कामयाब हो गई.
5. बीजेपी के गाय प्रेम से किसान खफा
लेकिन क्या गोरखपुर की ग्रामीण आबादी सिर्फ नाराजगी की वजह से बीजेपी से दूर हो गई या वजह कोई और है? ग्रामीण इलाकों में जब आगे बढ़े तो एक नई वजह भी नजर आई. ग्रामीण इलाकों के लोग आवारा जानवरों के प्रकोप से परेशान हैं। आवारा पशु किसानों के खेत खलिहान चर के बर्बाद कर रहे हैं. तिकुयान गांव के किसानों की सबसे बड़ी परेशानी हैं आवारा पशु जो उनके खेतों में खड़ी फसल खा रहे हैं. दिनभर मेहनत मजदूरी कर पसीना बहाने वाले इन किसानों को अब रात भर जाकर अपनी फसलों की निगरानी करनी पड़ रही है.
दरअसल पशुओं को अब बाजार में बेचने पर रोक है. नतीजा पशुओं की तादाद बढ़ गई है. किसान क्षमता से ज्यादा संख्या में पशु पालन नहीं सकता और ऐसे में जो पशु उसके काम का नहीं उसे वह छोड़ देता है. यही आवारा पशु गोरखपुर की सड़कों पर जहां तहां घूमते दिखाई पड़ रहे हैं. दिन शहर की सड़कों पर बीतता है तो रात की भूख होने गांव में किसानों की खेत तक ले जाती है और खड़ी फसल इन जानवरों का चारा बन जाती है. यही किसानों के अंदर भारी गुस्से का एक बड़ा कारण है.