5 मार्च की रात है, रात के साढ़े ग्यारह बजे हैं. दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित SSC के दफ़्तर के बाहर काफ़ी चहल-पहल है. पुलिस बैरिकेड के आसपास दिल्ली पुलिस के कुछ जवान प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठे हैं और उनसे थोड़ी दूरी पर क़रीब पांच सौ प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं ज़मीन पर पालथी जमाए हैं.
मौसम में हल्की सर्दी है, आसमान में पूरा चांद चमक रहा है. एकाध स्ट्रीट लाइट को छोड़कर बाक़ी काम कर रही हैं, पूरा इलाक़ा चांद की दूधिया और इन स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी से नहाया हुआ है.
आसपास थोड़ी गंदगी है, पुराने अख़बार के टुकड़े, खाना खाने के बाद इधर-उधर फेंक दिए गए प्लास्टिक के झूठे दोने, पैकेटबंद पानी के ख़ाली पैकेट इधर-उधर पड़े हुए हैं.
हालांकि सड़क पर पालथी जमाए छात्र-छात्राओं को इस गंदगी से ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है मानों अब ये इनकी ज़िंदगी का हिस्सा हों. सबलोग बड़े ध्यान से स्वराज इंडिया से जुड़े योगेन्द्र यादव को सुन रहे हैं. योगेंद्र यादव इन्हें एकजुट रहने की सलाह दे रहे हैं और अपना समर्थन इनके प्रति जता रहे हैं.
तो अबतक आप समझ ही गए होंगे कि बात उन प्रदर्शनकारी छात्रों की हो रही है जो पिछले सात दिनों से दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित कर्मचारी चयन आयोग के दफ़्तर के आगे प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी छात्रों की सबसे प्रमुख मांग है कि कर्मचारी चयन आयोग जितने तरह की परीक्षाएँ करवाती है उनसब की जांच तय समय में सीबीआई से कराई जाए.
रविवार एक ख़बर आई थी कि कर्मचारी चयन आयोग ने प्रदर्शनकारी छात्रों की मांग मान ली है लेकिन इन छात्रों का मानना है कि इनके साथ धोखा हुआ है और इनकी कोई मांग नहीं मानी गई है.
ख़ैर, रात के बारह बज गए हैं. कैलेंडर के हिसाब से दिन बदल गया है. योगेंद्र यादव अपनी बात कहकर जा चुके हैं. पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे इन छात्रों में बेचैनी साफ़ दिख रही है. बेचैनी, अवसाद और ग़ुस्से की वजह से आपस में तू-तू-मैं-मैं वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. लेकिन इन्हीं में से कुछ छात्र आगे आकर बीच-बचाव भी कर रहे हैं. ज़्यादातर लोग खड़े हो गए हैं, कुछ इधर-उधर टहल रहे हैं. कुल मिलाकर स्थिति वैसी ही है जैसे देशभर में युवाओं की है.
यह भी कहना ग़लत ना होगा कि अपने-अपने घर-परिवार से दूर दिल्ली में रहकर सरकारी नौकरी करने वाले इन छात्रों के पास प्रदर्शन करने, धरना देने या नारेबाज़ी करने का कोई अनुभव नहीं है और ये परिणाम को लेकर थोड़े घबराए हुए भी हैं. इन्हें सबसे ज़्यादा डर पुलिसिया कार्यवाई की है.
रात के एक बजने को हैं. आसपास में घूमने पर दिखता है कि थक चुके छात्र-छात्राएँ कैसे कहीं भी सो रहे हैं. कोई काग़ज़ के ग़त्ते पर सोया है, किसी ने अख़बार बिछाया है और अख़बार ही ओढ़ लिया है. कुछ लोग बीच सड़क पर खुले में सो रहे हैं तो कुछ ने किनारे जाकर पेड़ की ओट ले ली है. कुछ गहरी नींद में है तो कुछ ऊँघ रहे हैं, वहीं कुछ लोग अपने मोबाइल पर गाना सुन रहे हैं, न्यूज़ देख रहे हैं. इस तरह से ये इनकी छठी रात है.
हां कुछ लोग पास में बैठकर रात का खाना भी खा रहे हैं, मेन्यू है-आलू की सब्ज़ी और पूरी. आज ये दोनो आइटम गरम-गरम है सो कुछ लोग खाते-खाते कह रहे है, ‘अरे आज तो पार्टी है. गरम सब्ज़ी, ग़रम पूरी’
दिन के समय ब्रेड, केला और पारलेजी बिस्कुट बंटता है. खाने-पाने का इंतज़ाम ये लोग ख़ुद देख रहे हैं, आपस में चंदा करके. रात में रुकने वालों में ज़्यादातर लड़के ही हैं, एक-दो लड़कियां हैं जो पास में ही सो रही हैं. बात करने पर मालूम चला कि यहाँ सबसे ज़्यादा दिक़्क़त शौचालय की है. खासकर लड़कियों के लिए, इसलिए ज़्यादातर लड़कियां रात में चली जाती हैं. पिछले कई दिनों से MCD की गाड़ी कूड़ा उठाने भी नहीं आई है सो आसपास गंदगी का अंबार लगा हुआ है.
आज से संसद का सत्र भी शुरू हो रहा है और इन नौजवानों को अपने सांसदों से बहुत उम्मीद है. वो खाते-खाते आपस में बात कर रहे हैं, ‘कोई ना कोई सांसद तो उठाएगा ही. आज से संसद शुरू हो रहा है. ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि कोई हमारे मुद्दे को उठाए ही ना.’
दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित कर्मचारी चयन आयोग के दफ़्तर के आगे डटे ये नौजवान चांदनी रात में एक साथ कई सबक़ ले रहे हैं. वो कई बार हताशा के गर्त में डूबे जा रहे हैं और उनका ही कोई साथी उन्हें वहाँ से बाहर ला रहा है. वो नेताओं के प्रति अविश्वास जताते हैं लेकिन दूसरे ही पल आज से शुरू होने वाले संसद सत्र को लेकर आशान्वित हो जा रहे हैं. इन्हें डर है कि बाहर बैठी पुलिस किसी भी रात अंदर आ जाएगी और लाठियों पीट कर बाहर कर देगी. लेकिन ये इस डर को अपने ऊपर ज़्यादा डर तक हावी भी नहीं होने दे रहे हैं. ख़ुद को विश्वास दिलाते हैं कि अगर ऐसा कुछ हुआ तो ये रात और ये चाँद इनकी गवाही देगा.