दिनः 15 फरवरी 2016, सोमवार. वक्तः शाम के साढ़े छह बजे. जगहः जेएनयू का गंगा ढाबा. और इससे पहले हौज खास मेट्रो स्टेशन से जेएनयू तक ऑटो की सवारी. ऑटो वाला पूछता है- अंदर जाने देंगे या नहीं, 24 घंटे से तो किसी ऑटो को जाने नहीं दिया? मैं जवाब दे पाता उससे पहले ही उसने फिर पूछ लिया- आखिर हुआ क्या है जेएनयू में. क्यों बवाल मचा है? मैंने पूछा- अफजल गुरु का नाम सुना है. ऑटो वाला कहता है- साहब, हमने तो नहीं सुना. अफजल और जेएनयू में जो हुआ उस पर बातचीत करते हुए मंजिल आ गई. मेन गेट पर ऑटो रोक दिया गया. गेट पर ही रोकी गई न्यूज चैनलों की ओबी वैन खड़ी हैं. बैरिकेड लगे हैं. मैं सीधे अंदर जाता हूं. गेट पर गार्ड हैं, पर रोकते-टोकते नहीं. मैं सीधे गंगा ढाबा पहुंचता हूं. इसके बाद रात भर जो हुआ वह कुछ यूं है...
सीन-1: ढाबे पर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटे कुछ लोगों में चाय पर चर्चा जारी है. वहीं से एबीवीपी कार्यकर्ता जुलूस की शक्ल में निकलते हैं. नारे लग रहे हैं- 'राष्ट्र एकता जिंदाबाद, नक्सली गुंडे मुर्दाबाद'. साढ़े सात बजे यह जुलूस चंद्रभागा हॉस्टल पहुंचता है. यहां छोटी सी सभा होती है. सभा में छात्र, छात्रनेता और प्रोफेसर हैं. बताने की कोशिश होती है कि किस तरह जेएनयू में वामपंथ हावी हो रहा है और कैसे जेएनयू की राष्ट्रवादी संस्कृति नक्सल समर्थकों की वजह से डूब रही है.
सीन-2: 'एबीवीपी बनाम जेएनयू बनाई जा रही है लड़ाई'
एक प्रोफेसर सभा को संबोधित करते हैं- 'जेएनयू में महज कुछ लोग माहौल खराब कर रहे हैं. बाकी छात्र राष्ट्रवादी हैं.' सोमवार को ही अपनी एक यात्रा से लौटे दूसरे प्रोफेसर कहते हैं- 'कुछ लोग यह स्थापित करने पर तुले हैं कि जेएनयू में सबकुछ गलत हो रहा है. ऐसे लोग पढ़ते-पढ़ाते कम हैं. बाकी गलत गतिविधियों में ही उनका योगदान ज्यादा रहता है. जब तक ऐसे लोगों को सजा न मिले आंदोलन जारी रखना है.' एबीवीपी के एक छात्र नेता कहते हैं कि कुछ लोग जेएनयू में शुरु हुए विवाद को दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश में हैं. इस लड़ाई को अब एबीवीपी बनाम जेएनयू बनाने की कोशिश की जा रही है.
'अब भी जिनका खून न खौला, खून नहीं वह पानी है'
एक और प्रोफेसर आते हैं. 'कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे' से अपने भाषण की शुरुआत करते हैं. कहते हैं कि 'जेएनयू में उनके कुछ साथियों ने इतना पढ़ लिया है कि उन्हें देश का भला-बुरा समझ नहीं आता. अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगाने वालों के खून में मुहम्मद गोरी का खून हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. सोशल मीडिया में आग की तरह राष्ट्रवादी भावना फैलाएं, क्योंकि अब भी जिनका खून न खौला, खून नहीं वह पानी है.'
सीन-3: रात के पौने नौ बजे, ताप्ती हॉस्टल
एक कमरे में जमा हुए छात्र दिनभर क्या हुआ इस पर चर्चा करते हैं. हंसी मजाक चलता है. देखकर साफ पहचाने जा सकते हैं कि इनमें से कुछ ऐसे हैं जो सिर्फ टीवी पर दिखने के लिए जुलूसों और नारेबाजी में शामिल होते रहे हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो घरवालों के डर से सामने आकर नारे नहीं लगा पा रहे. कुछ लोग वीसी को दोषी ठहरा रहे हैं तो कुछ लोग केंद्र सरकार के इशारे पर सबकुछ होने का दोष मढ़ते हैं. ज्यादातर छात्र कन्हैया की रिहाई पर बहस करते हैं और उसकी पारिवारिक स्थिति पर भी चिंता जताते हैं. हालांकि सब यही कहते हैं कि राजनीति की बलि बन गया है कन्हैया. ज्यादातर छात्र मीडिया में अपना नाम कोई नहीं लाना चाहते. सभी को करियर की चिंता है.
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सीन-4: रात के साढ़े नौ बजे, एडमिन ब्लॉक
छोटे-छोटे गुटों में छात्र-छात्राएं जमा हैं. एक कोने में छात्र रजाई ओढ़े लेटे हैं. कुछ लोग उन्हें घेर कर बैठे हैं. कुछ बाहर खड़े हैं. हर हाथ में स्मार्टफोन है. एक कोने पर लैपटॉप में कुछ लोग प्राइम टाइम डिबेट लाइव देख रहे हैं. कुछ अपने मोबाइल में लाइव टीवी देख रहे हैं. दीवारों पर 'जस्टिस फॉर रोहित वेमुला' के स्लोगन लिखे हैं. तख्तियों पर जबरन राष्ट्रवाद थोपने वालों के प्रति आग उगलते शब्द हैं. मोबाइल से फोटो खिंचती देख लोग चौकन्ने होते हैं. शक भरी नजरों से देखते हैं. कोर्ट रूम में हुई मारपीट और कन्हैया को लेकर चर्चा में कुछ छात्र व्यस्त हैं. कुछ छात्र ऐसे भी हैं जो थोड़ी देर पहले एबीवीपी के जुलूस के साथ दिखे थे. नारेबाजी नहीं है. रात बढ़ रही है और खाने की फिक्र के साथ लोग हॉस्टल के लिए निकलते हैं.
सीन-5: रात के दस बजे, पेरियार हॉस्टल
नारेबाजी और धरना-प्रदर्शन से परे पेरियार हॉस्टल का नजारा ऐसा है. मानो जेएनयू में कुछ हुआ ही नहीं. कल्चरल नाइट के लिए मंच सजा है. संचालक टूटी-फूटी भोजपुरी और 'देसी हिंदी' में लोगों को एंटरटेन करने की कोशिश करता है. धीरे-धीरे गीत, संगीत और डांस का दौरा शुरू होता जो आधी रात के बाद भी चलता है. 'ऊ ला..ला' और 'सात समंदर पार...' जैसे गानों पर ठुमके लगाते छात्रों के साथ वहां मौजूद हर शख्स झूमता है, सीटियां बजाता है और हूटिंग भी करता है. मंगेशकर की आवाज में 'वंदे मातरम' पर एक छात्र डांस करता है, लेकिन कोई भी उसे 'भक्त' नहीं कहता. सब खुश होकर ताली बजाते हैं. माहौल में रंग जमाते हुए एक लड़का 'शक्तिमान' का थीम सॉन्ग भी गाता है. सब हंस-हंस कर तालियां बजाते हैं. 12 बजे के बाद भी कार्यक्रम जारी रहता है.
सीन-6: रात के साढ़े बारह बजे, गंगा ढाबा
ढाबे पर अभी भी छात्रों के छोटे-छोटे गुट जमा हैं. हाथों पर चाय के कप हैं और जुबां पर जेएनयू का माहौल. एक छात्र से नाम पूछा तो उसने बताने से मना कर दिया. कैंपस में चल रही गतिविधियों पर उससे बात करने की कोशिश तो नाराज हो गया. गुस्से में कहता है- 'पढ़ाई चौपट हो रही है. जबरन आकर क्लास बंद करा देते हैं. वामपंथ के नाम पर ढोंग चल रहा है. टीचर भी साथ दे रहे हैं, यही वजह है जेएनयू का माहौल बिगड़ा है. टीचर आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. अगर टीचर आगे न आएं तो किसी की मजाल नहीं कि कुछ भी गलत कर ले.' अफजल गुरु के समर्थन में हुए कार्यक्रम का जिक्र करने पर छात्र ने कहा- 'यह पहला मामला है जिसमें वामपंथी फंस गए हैं. हर बार कुछ नया खोदकर ले आते थे लेकिन इस बार बुरे फंस गए हैं. नेताओं के आने से माहौल और बिगड़ा है. कन्हैया बुरा फंसा है, पैसे वाले बाहर आ जाएंगे, कुछ रसूख के बल पर बच भी गए हैं. नाम आया लेकिन अंदर नहीं गए.' हालांकि जब ऐसे लोगों के नाम पूछे गए तो उसने बताने से मना कर दिया.
सीन-6: रात के सवा एक बजे, जेएनयू का झेलम हॉस्टल
हर तरफ सन्नाटा है. इक्का-दुक्का छात्र लॉबी पर दिखे. ज्यादातर दरवाजे बंद हैं. एक कमरे का दरवाजा खुला दिखा. तीन छात्र बैठे हैं, लेकिन किसी ने कैंपस के संबंध में कोई बात करने मना कर दिया. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा, 'असल मुद्दा जो था, उस पर कुछ नहीं हो रहा. अब सब कुछ नेताओं के इशारे पर चल रहा है. अफजल के समर्थन में कार्यक्रम करने का मामला अब दो संगठनों की लड़ाई बन गया है. दोनों अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं, सिवाय इसके कुछ नहीं हो रहा है. इस सब के बीच नुकसान उनका है जो पढ़ना चाहते हैं.'
सीन-7: मंगलवार, सुबह छह बजे, फिर गंगा ढाबा
हर तरफ सन्नाटा है. कुछ लोग मॉर्निंग वॉक पर निकले हैं. मेन गेट से कुछ दूर बैठा गार्ड भी अभी नींद में है. मेन गेट से बैरिकेड हटा दिया गया है. बसों को अंदर जाने दिया जा रहा है. गेट पर किसी तरह की पूछताछ या रोक-टोक नहीं है. कैंपस में पुलिस या पीसीआर वैन कहीं भी नहीं दिखी न ही गेट पर.