भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण किया है. जीएसएलवी (GSLV) मार्क-3 ने अपने साथ संचार उपग्रह जीसैट-19 को लेकर उड़ान भरी. जीएसएलवी एमके थ्री भारत का सबसे भारी रॉकेट है. जीएसएलवी एमके-थ्री का प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से सोमवार की शाम 5.28 बजे किया गया.
जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी. प्रधानमंत्री ने लिखा कि जीएसएलवी मार्क-3 और जीसैट-19 के प्रक्षेपण के बाद भारत अगली पीढ़ी के लॉन्च व्हीकल और सैटेलाइट क्षमता हासिल करने के करीब पहुंच गया है. देश को इस पर गर्व है.
Congratulations to the dedicated scientists of ISRO for the successful launch of GSLV – MKIII D1/GSAT-19 mission.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 5, 2017
The GSLV – MKIII D1/GSAT-19 mission takes India closer to the next generation launch vehicle and satellite capability. The nation is proud!
— Narendra Modi (@narendramodi) June 5, 2017
इसरो की कामयाबी पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी ट्वीट कर बधाई दी.
Heartiest congratulations to ISRO on the historic launch of GSLV-Mk III #PresidentMukherjee
— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 5, 2017
GSLV-Mk III is the heaviest rocket ever made by India and is capable of carrying the heaviest satellites made till date #PresidentMukherjee
— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 5, 2017
The nation is proud of this significant achievement #PresidentMukherjee
— President of India (@RashtrapatiBhvn) June 5, 2017
10 हजार किलो के पेलोड को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाने में सक्षम
इसरो अध्यक्ष एस एस किरण कुमार ने बताया कि ये मिशन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अब तक का सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है जिसे देश से छोड़ा जाना है. किरण कुमार ने बताया कि अब तक 2300 किलोग्राम से अधिक वजन के संचार उपग्रहों के लिए इसरो को विदेशी लॉन्चरों पर निर्भर रहना पड़ता था. उन्होंने बताया कि जीएसएलवी एमके थ्री-डी 4000 किलो तक के पेलोड को उठाकर जीटीओ और 10 हजार किलो तक के पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है.
इनके प्रक्षेपण के साथ ही डिजिटल भारत को मजबूती मिलेगी. साथ ही ऐसी इंटरनेट सेवाएं मिलेगी जैसे पहले कभी नहीं मिलीं. केंद्र के निदेशक तपन मिश्रा ने इसे भारत के लिए संचार के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी उपग्रह बताया है. उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्षेपण सफल रहा तो अकेला जीसैट-19 उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित पुराने किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के समूह के बराबर होगा. फिलहाल अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं.
जीएसएलवी एमके-3 का वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है. तपन मिश्रा के अनुसार, जीएसएलवी एमके-3 देश का पहला ऐसा उपग्रह है जो अंतरिक्ष आधारित प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके तेज स्पीड वाली इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम है. उन्होंने बताया कि देश ऐसी क्षमता विकसित करने पर जोर दे रहा है जो फाइबर ऑप्टिक इंटरनेट की पहुंच से दूर स्थानों को जोड़ने में महत्वपूर्ण हो.
बढ़ेगी इंटरनेट सेवा
जीसैट-19 को पहली बार भारत में बनी लीथियम आयन बैटरियों से संचालित किया जा रहा है. इन बैटरियों को इसलिए बनाया गया है ताकि भारत की आत्मनिर्भरता
को बढ़ाया जा सके. इसके साथ ही ऐसी बैटरियों का कार और बस जैसे इलैक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल किया जा सकता है. जीसैट-19
की सबसे नई बात यह है कि पहली बार उपग्रह पर कोई ट्रांसपोन्डर नहीं होगा. मिश्रा ने कहा कि यहां तक कि आसमान के नए पक्षी के साथ ट्रांसपोन्डर शब्द ही नहीं जुड़ा होगा. यहां तक
कि पहली बार इसरो पूरी तरह नए तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम का इस्तेमाल कर रहा है जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी.