केंद्र के बदलाव के सुझावों को खारिज करते हुए गुजरात विधानसभा में विवादास्पद आतंकवाद निरोधी ‘गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण (गुजकोका) विधेयक’ दोबारा पारित कर दिया गया है. मोदी सरकार ने मंगलवार को इस विधेयक को दोबारा पारित कर संप्रग सरकार के साथ ताजा टकराव की स्थिति पैदा कर दी है.
पांच साल पहले पारित और अभी भी राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहे गुजकोका में बदलाव के राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के सुझावों को अनदेखा करते हुए सदन ने अपरिवर्तित विधेयक को आम सहमति से मंजूरी दे दी. इस दौरान सदन में केवल सत्तारूढ़ पक्ष के विधायक मौजूद थे और विपक्षी कांग्रेस के विधायकों ने जहरीली शराब से हुई मौतों के मामले में सदन से बहिष्कार कर दिया.
गुजकोका विधेयक को दोबारा सदन में पेश करते हुए राज्य के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति के सुझाए गए बदलावों को सदन द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता. यदि हम राष्ट्रपति के सुझावों को शामिल करते हैं तो गुजकोका विधेयक एक और भारतीय दंड संहिता बन जाएगा जो गुजरात के लिए अच्छी बात नहीं है, जिसकी जमीनी और समुद्री सीमा पड़ोसी देश पाकिस्तान से जुड़ी है.’’ शाह ने कहा, ‘‘जब हमने पहली बार गुजकोक पेश किया था, तब आतंकवाद से लड़ने में सक्षम पोटा कानून लागू था. इसलिए हमने संगठित अपराधों से लड़ने के लिए एक कानून तैयार किया. लेकिन अब जबकि पोटा नहीं है, हमारे पास आतंकवाद से लड़ने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है. इसलिए हमने विधेयक में ‘आतंकवाद’ शब्द जोड़ा है और ‘आतंकवादी गतिविधियों’ को परिभाषित किया है.’’
शाह ने यह भी कहा कि विधेयक को एक बार फिर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. राष्ट्रपति ने पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर गुजकोका विधेयक को लौटा दिया था, जो 2004 में राज्य विधानसभा में पारित किया गया था. केंद्र ने महसूस किया कि विधेयक वापस हो चुके पोटा की तर्ज पर है. बदलाव के भी सुझाव दिये गये थे. विधेयक को लौटाते हुए राष्ट्रपति ने तीन बदलावों का सुझाव दिया था, जिसे राज्य सरकार ने खारिज कर दिया.
राष्ट्रपति ने केंद्रीय कैबिनेट की सलाह पर राज्य सरकार से कहा था कि गुजकोका विधेयक के उपबंध 16 को हटा दिया जाए जो पुलिस के समक्ष किसी व्यक्ति के दोष मानने को मुकदमे में मान्य करता है. इसके अलावा दो अन्य उपबंधों 20-2(बी) और 20(4) में बदलाव की बात थी.