आतंकी घटनाओं से निपटने के लिए हर शहर और राज्य की पुलिस अक्सर मॉक ड्रिल करती है. देश में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखते हुए यह जरूरी भी है, लेकिन आतंक को किसी धर्म से जोड़ना खोखली सोच ही दिखाती है. इसी खोखली सोच का परिचय गुजरात के सूरत और नर्मदा में मॉक ड्रिल के दौरान वहां की पुलिस ने दिया.
दरअसल यहां मॉक ड्रिल में आतंकियों की भूमिका निभाने वालों को मुस्लिम दिखाया गया था. उन्हें मुस्लिम टोपी पहनाई गई और इस्लाम जिंदाबाद, कश्मीर लेकर रहेंगे, नर्मदा लेकर रहेंगे के नारे लगवाए गए. इस तरह की हरकत से साफ हो गया कि पुलिस सूरत और नर्मदा पुलिस मुस्लिमों को किस नजरिए से देखती है.
मॉक ड्रिल में आतंकी को मुस्लिम दिखाए जाने पर धार्मिक संगठन आग बबूला हैं और विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार से जवाब मांगा है. एसपी ने भी गलती मानी है और कहा है कि दोषियों को सजा दी जाएगी. सवाल उठ रहे हैं कि क्या गुजरात पुलिस भी यही मानती है कि मुस्लिम ही आतंकवादी होते हैं, अगर नहीं तो फिर आतंकी को मुस्लिम ही क्यों दिखाया और क्यों इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगवाए गए.
ऐसा भी नहीं है कि पुलिस ने सिर्फ एक बार ऐसा किया हो. नर्मदा जिले की पुलिस ने मॉक ड्रिल में जिस तरह इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ा उसी तरह से सूरत पुलिस ने भी धर्म को आतंकवाद से जोड़ दिया. नर्मदा में इस्लाम जिंदाबाद के नारे लगवाए गए थे और सूरत में पुलिसवालों के सिर पर इस्लामी टोपी सज गई.
हालांकि सूरत पुलिस ने गलती मान ली है. मामले की जांच के आदेश भी दे दिए हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या ये छोटे पुलिस अफसरों की गलती थी या इस मामले में बडे अफसरों की कोई जिम्मेदारी बनती है. पुलिस के आला अधिकारी कह रहे हैं कि ये हरकत जूनियर पुलिसवालों की है, उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है. हो सकता है चंद जूनियर पुलिस अफसरों पर कार्रवाई की गाज भी गिरा दी जाए, लेकिन क्या बड़े अधिकारियों की कोई भूमिका नहीं बनती.