झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन उर्फ गुरु जी को रविवार रात बेआबरू होकर सत्ता के गलियारे से बाहर निकलना शायद ताजिन्दगी सालता रहेगा.
लेकिन उनके लिए इस तरह कुर्सी से हाथ धोने का यह कोई पहला मौका नहीं है. उन्होंने तो पिछले छह वर्षों में छह बार किसी न किसी पचड़े में पड़ कर शीर्ष पदों से इस्तीफा दिया है. इसे भाग्य का खेल कहें या वक्त का तकाजा कि 5 वर्षों के भीतर शिबू सोरेन तीसरी बार चंद दिनों के भीतर झारखंड की कुर्सी से बेआबरू होकर बाहर हो गये.
इससे पहले 11 मार्च 2005 को भी गुरु जी ने राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल करने में विफल रहने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. एक बार फिर 12 जनवरी 2009 को गुरु जी को विधानसभा उपचुनाव में हार के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर सत्ता से बाहर होना पड़ा था. गुरु जी सिर्फ मुख्यमंत्री के पद से ही तीन बार बेआबरू होकर विदा नहीं हुए बल्कि पिछले छह वर्षों में ही तीन बार वह केन्द्रीय मंत्रिमंडल से भी किसी न किसी मामले में विवाद में फंस कर विदा हुए.
केन्द्रीय मंत्रिमंडल से पहली बार गुरुजी को 24 जुलाई 2004 को चिरुडीह नरसंहार के मामले में जामताड़ा की एक अदालत से गैरजमानती वारंट जारी होने पर इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद दो मार्च 2005 में उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से झारखंड के मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने के लिए इस्तीफा दिया लेकिन वहां से उन्हें नौ दिनों बाद ही इस्तीफा देना पड़ा.
गुरु जी को तीसरी बार 28 नवंबर 2006 को उस समय केन्दीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था जब उन्हें अपने सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने सजा सुनायी थी.
इस बार एक बार फिर गुरु जी ने पिछले वर्ष नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के बाद 30 दिसंबर को भाजपा आजसू और जद यू के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनायी और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन सिर्फ पांच माह में ही भाजपा के समर्थन वापसी के बाद अल्पमत में आयी अपनी सरकार का इस्तीफा उन्होंने राज्यपाल एम ओ एच फारुक को सौंपना पड़ा. झारखंड बनने के बाद यहां के लोगों को लगा कि वह यहां के पहले मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जेल भी जाना पड़ा लेकिन रविवार की उनकी गद्दी से विदाई शायद उन्हें आजीवन सालती रहेगी.