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CBI एक असंवैधानिक एजेंसी है: गुवाहाटी हाई कोर्ट

अपनी किस्म के एक अजीबोगरीब फैसले में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसके जरिए केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई का गठन किया गया था और साथ ही कहा है कि सीबीआई की सारी कार्रवाइयां ‘असंवैधानिक’ हैं.

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सीबीआई की साख पर फिर उठे सवाल
सीबीआई की साख पर फिर उठे सवाल

अपनी किस्म के एक अजीबोगरीब फैसले में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसके जरिए केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई का गठन किया गया था और साथ ही कहा है कि सीबीआई की सारी कार्रवाइयां ‘असंवैधानिक’ हैं.

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केंद्रीय जांच ब्यूरो के गठन को असंवैधानिक करार देने वाले गुवाहाटी उच्च न्यायालय के फैसले से सकते में आयी केंद्र सरकार ने कहा कि वह इस आदेश को चुनौती देने के लिए जल्द से जल्द सोमवार को उच्चतम न्यायालय में जाएगी.

अपनी किस्म के हैरान कर देने वाले आदेश में गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया है जिसके जरिए सीबीआई का गठन किया गया था और उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीबीआई की सारी कार्रवाइयां असंवैधानिक हैं.

अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल पी पी मल्होत्रा ने बताया, फैसला गलत है. हम निश्चित रूप से इसे चुनौती देंगे और सोमवार को उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल किए जाने की संभावना है.

न्यायाधीश आई ए अंसारी तथा इंदिरा शाह की खंडपीठ ने यह फैसला हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2007 में दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए नावेन्द्र कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर दिया. वर्ष 2007 में सीबीआई का गठन करने वाले प्रस्ताव के संबंध में फैसला दिया गया था. अदालत ने कहा, ‘इसलिए हम 01.04.1963 के प्रस्ताव को रद्द करते हैं जिसके जरिए सीबीआई का गठन किया गया था. हम यह भी फैसला देते हैं कि सीबीआई न तो दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) का कोई हिस्सा है और न उसका अंग है और सीबीआई को 1946 के डीएसपीई अधिनियम के तहत गठित ‘पुलिस बल’ के तौर पर नहीं लिया जा सकता.’

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अदालत ने आगे कहा कि गृह मंत्रालय का उपरोक्त प्रस्ताव ‘न तो केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही इन कार्यकारी निर्देशों को राष्ट्रपति ने अपनी मंजूरी दी थी.’

अदालत ने कहा, ‘इसलिए संबंधित प्रस्ताव को अधिक से अधिक एक विभागीय निर्देश के रूप में लिया जा सकता है जिसे ‘कानून’ नहीं कहा जा सकता.’ इसके बाद अदालत ने सीबीआई द्वारा कुमार के खिलाफ दाखिल आरोपपत्र और साथ ही सुनवाई को दरकिनार करते हुए रद्द कर दिया.

अदालत ने आगे कहा, ‘मामला दर्ज करने, किसी व्यक्ति को अपराधी के रूप में गिरफ्तार करने, जांच करने, जब्ती करने, आरोपी पर मुकदमा चलाने आदि की सीबीआई की गतिविधियां संविधान के अनुच्छेद 21 को आघात पहुंचाती हैं और इसलिए इसे असंवैधानिक मानकर रद्द किया जाता है.’ अदालत ने हालांकि कहा कि सीबीआई अदालत में लंबित कार्यवाही पर आगे जांच करने के लिए पुलिस पर कोई रोक नहीं है.

सीबीआई का गठन किए जाने पर अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी का गठन कुछ स्थितियों से निपटने के लिए तदर्थ उपाय के रूप में किया गया था. अदालत ने कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा किया गया यह उपाय किसी अध्यादेश के रूप में नहीं था बल्कि सीबीआई का गठन एक कार्यकारी फैसला था और उसमें भी सत्ता के स्रोत का जिक्र नहीं.’ न्यायाधीशों ने कहा कि प्रस्ताव सीबीआई के अधिकार के स्रोत के रूप में डीएसपीई अधिनियम 1946 के किसी प्रावधान का जिक्र नहीं करता.

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अदालत ने यह भी कहा कि उन्होंने प्रतिवादियों से सीबीआई के गठन संबंधी रिकार्ड पेश करने को कहा था लेकिन उन्होंने मूल रिकार्ड दाखिल नहीं किया और राष्ट्रीय अभिलेखागार से मिली एक सत्यापित प्रति पेश कर दी.

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