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मुजफ्फरनगर के मुजरिमों पर कार्रवाई कब? पढ़ें आपने क्‍या कहा

मुजफ्फरनगर में हिंसा भड़काने वालों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं है. इसी पर आज तक के कार्यक्रम 'हल्‍ला बोल' में आज का मुद्दा है- "मुजफ्फरनगर के मुजरिमों पर कार्रवाई कब".

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर जिला नफरत की आग में बुरी तरह जल रहा है. सवाल उठता है कि आखिर कब होगी मुजफ्फरनगर के मुजरिमों पर कार्रवाई?

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आपको यह जानकर अफसोस होगा कि अमन के ये नासूर किसी एक दल के नहीं हैं. उत्तर प्रदेश के सभी बड़े दलों के नेताओं ने मिलकर अमन में लगी आग में अपनी आहुति डाली है.

आज तक के पास बीजेपी की साध्वी प्राची का पूरा भाषण है. उनके एक-एक शब्द जहर में डूबे हुए हैं. आदमी और आदमी के बीच दीवार खड़ी करते हुए और एक-एक भंगिमा धर्म के नाम पर आदमी को हैवानियत के नंगे नाच के लिए उकसाने वाली है.

बीएसपी के नेता कादर राणा ने नमाज के बाद भाषण के नाम पर दहशतगर्दी की कोशिश की. उन्‍होंने नमाज के बाद मस्जिद के बाहर जो तकरीर की, उसे सभ्यता की किताब में धार्मिक उन्माद कहते हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार को कोसने वाली बीएसपी के कादर राणा का पूरा भाषण कौमी तासीर में माचिस लगाने वाला था.

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कांग्रेस के नेताओं में भी अखिलेश राज को अंधेरराज साबित करने की होड़ लगी हुई है. लेकिन मुजफ्फरनगर के दामन पर माचिस की तीली रगड़ने वाले हाथ उसके भी थे. कांग्रेस नेता सईद उर जमां ने अपनी बोली को बलवे का बहाना बनाकर रख दिया. समाजवादी पार्टी के नेता राशिद सिद्दीकी ने नमाज के बाद नापाक भाषणबाजी की.

मुजफ्फरनगर में फसाद का फसाना लिखने वाले सारे चेहरे साफ थे. उन चेहरों के इरादे साफ थे और साफ था उन इरादों का अंजाम. आग उगलते हुए वो चेहरे बीजेपी के भी थे, आग में घी डालते वो चेहरे कांग्रेस के भी थे, शांति को दहशत में बदलने वाले वो चेहरे बीएसपी के भी थे और वो चेहरे उस समाजवादी पार्टी के भी थे, जिसकी सरकार के सरदार हैं अखिलेश यादव.

लेकिन अखिलेश यादव हाथ पर हाथ धरे देखते रहे थे मुजफ्फरनगर से आ रही बलवे की तस्वीरों को. अफसोस तो ये है कि वो आज भी बलवाइयों को बचाने की ढाल ढूंढ रहे हैं.

अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के नेता राशिद सिद्दिकी को क्लीन चिट देता हुए कहा कि उन्‍होंने कोई भड़काऊ भाषण नहीं दिया. जबकि उन्‍होंने धारा 144 लगने के बाद भी भाषण दिया था. यह सब कैमरे में भी कैद हुआ था.

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बहुत समझदार हो गए हैं अखिलेश. बहुत जल्दी समझ गए हैं कि वोट के लिए खोट को खारिज करना पड़ा है. मुजफ्फरनगर जलता है तो जल जाए. लोग मारे जा रहे हों तो मर जाएं, बस्तियां उजड़ रही हों तो उजड़ जाएं. सिंहासन सलामत रहे बादशाह सिर्फ इतना चाहता है.

अखिले क्यों नहीं बताते कि जब इलाके में धारा 144 लगी थी तो मंदिरों और मस्जिदों के बाहर नफरत की मचान बांधने की छूट क्यों दे दी थी उनके सिपाहियों ने और उनकी सरकार ने.

एफआईआर में साफ-साफ लिखा है कि किन लोगों ने मुजफ्फरनगर में अमन में आग लगाई. लेकिन इसपर हथकड़ी लेकर निकलने की बजाय पुलिस मिजाजपुर्सी में लगी थी, क्योंकि लखनऊ ने उन्हें विनाशलीला की छूट दे रखी थी.

कुल मिलाकर किस्सा इतना है कि मुजफ्फरनगर में जब हत्यारे गश्त पर थे, तो अखिलेश यादव को एक-एक चेहरे के बारे में पता था. लेकिन सूबेदार को शांति से ज्‍यादा सिंहासन की फिक्र थी. इसलिए घड़ियालों को नदी का पहरेदार बना दिया था.

आज तक के कार्यक्रम 'हल्‍ला बोल' में आज का मुद्दा था- "मुजफ्फरनगर के मुजरिमों पर कार्रवाई कब". इस बहस में अपनी राय देकर आपने इसे और भी ज्‍यादा जानदार बनाया. आप अपने कमेंट्स नीचे पढ़ सकते हैं.

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