मुंबई के एक गराज में मोटर मैकेनिक का काम करने वाले उस लड़के ने जब लिखना शुरू किया तो उसकी आवाज में भारीपन था या नहीं, यकीन से नहीं कहा जा सकता. लेकिन उसके शब्दों में शोखी भरपूर थी. तभी संपूरण सिंह कालरा पहले 'गुलजार दीनवी' हुए, फिर बॉलीवुड की आंखों का नूर होकर 'गुलजार साहब' हो गए. आपके पसंदीदा नगमों के गीतकार शब्दों के जादूगर गुलजार का आज जन्मदिन है. वह 78 साल के हो गए हैं.
गुलजार का असली नाम संपूरण सिंह कालरा है. 'स्वामी विवेकानंद' से उन्होंने अपना सफर, जिसे आज कल करियर कहा जाता है, शुरू किया. लेकिन उन्हें असल प्रसिद्धि 1957 में आई फिल्म 'काबुलीवाला' मिली.
दिल छू लेने वाले शब्दों के इस्तेमाल से जज्बातों को सामने रखना ही गुलजार की ताकत है. 14 साल तक गीत लिखने के बाद 1971 में उन्होंने डायरेक्शन के क्षेत्र में कदम रखा. पहली फिल्म का नाम था 'मेरे अपने'.
गुलजार की आंखों ने ख्वाब देखा और सिलसिला चल निकला. उनके डायरेक्शन में 'कोशिश', 'परिचय', 'मौसम', 'खुशबू', 'आंधी' और 'लेकिन' जैसी फिल्में बनीं.
गुलजार ने प्रेम के हर भाव के लिए गीत लिखे और उनके जरिये हमारी-आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में स्थायी जगह बना ली. उन्हें फिल्म जगत का सर्वोच्च दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, नेशनल फिल्म अवॉर्ड और एकेडमी अवॉर्ड जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया.
गुलजार ने एक्ट्रेस राखी मजूमदार से शादी की, जो बाद में राखी गुलजार कहलाईं. उनकी
एक बेटी है मेघना गुलजार, जो बोस्की नाम से भी जानी जाती हैं. मेघना के जन्म के
एक साल बाद गुलजार और राखी अलग-अलग रहने लगे, लेकिन उन्होंने तलाक नहीं
लिया. मेघना ने भी 'फिलहाल', 'जस्ट मैरिड' और 'दस कहानियां' जैसी फिल्में बनाई
हैं.
गुलजार के जन्मदिन के मौके पर पढ़िए
एहसासों के हसीन खजांची गुलजार के नाम एक खुला खत
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