हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत मिलने के आसार नहीं दिख रहे हैं. हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला दिख रहा है. तमाम कयासों से अलग इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के मुताबिक हरियाणा में त्रिशंकु सरकार बनती दिख रही है.
90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 32 से 44 के बीच सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं, इस बार कांग्रेस की सीटों में इजाफे की उम्मीद दिख रही है. एग्जिट पोल के मुताबिक राज्य में कांग्रेस को 30 से 42 सीटें मिल सकती है. जबकि, जेजेपी को 6 से 10 सीटें मिलती दिख रही हैं. अगर यह आंकड़े सच्चाई में बदलते हैं तो हरियाणा में विधानसभा त्रिशंकु हो सकती है.
कांग्रेस को पिछली बार से दोगुनी सीटों का अनुमान
2014 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 47 सीटें मिली थीं. जबकि, कांग्रेस को उस समय सिर्फ 15 सीटें ही नसीब हुई थीं. लेकिन इस बार एग्जिट पोल ये बता रहा है कि कांग्रेस को हरियाणा में पिछली बार से दोगुनी सीटें मिल सकती हैं. यानी इस बार हरियाणा में कांग्रेस के नेताओं ने वापसी करने की कोशिश की है.
वैसे भी हरियाणा में मुख्य चुनावी लड़ाई सीधे तौर पर वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच थी. एग्जिट पोल के हिसाब से इस बार अगर हरियाणा में मतदान प्रतिशत देखें तो भाजपा को 33 फीसदी, कांग्रेस को 32 फीसदी और जेजेपी को 14 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं. जबकि, अन्य के खाते में 21 फीसदी वोट जाते दिख रहे हैं. इस बार हरियाणा में अगर कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिलती हैं तो इसका श्रेय भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा की जोड़ी को जाएगा.
विधानसभा चुनाव से ठीक कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया
विधानसभा चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस के नेताओं के बीच कई मौकों पर गुटबाजी सार्वजनिक तौर पर सामने आई. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. इसकी वजह से कांग्रेस की आलाकमान को काफी दिक्कत हो रही थी. ऐसे में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की करीबी मानी जाने वाली कुमारी शैलजा को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.
हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष बनने के बाद कुमारी शैलजा के सामने तीन चुनौतियां थीं. पहली पार्टी के अंदर गुटबाजी को खत्म करके चुनाव में सबके एकसाथ खड़ा करना. दूसरी- भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मिलकर राज्य में पार्टी को नई संजीवनी देने का काम करना. तीसरा - राज्य के सभी मतदाताओं के साथ-साथ दलित समुदाय को वापस अपने साथ जोड़ना, जिसका अशोक तंवर के जाने से नुकसान हो सकता था.
कैसे हुड्डा और शैलजा की जोड़ी ने सीटें बढ़ाने का कारनामा किया?
हरियाणा में जाटों की आबादी करीब 30 फीसदी है. इनमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अच्छी पकड़ है. वहीं, राज्य में करीब 19 प्रतिशत दलित वोटर्स हैं. हरियाणा में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर की दलितों के बीच खासी पैठ थी, लेकिन उनके जाने से दलित समुदाय का वोट टूटने की आशंका थी. लेकिन इसी समुदाय से आने वाली कुमारी शैलजा द्वारा पार्टी की कमान संभालने से दलित समुदाय के वोटरों को वापस पार्टी की तरफ लाने में मदद मिली.
राज्य की 90 सीटों में से 55 सीटों पर 40 फीसदी वोटर जाट समुदाय से आते हैं. जबकि, 71 सीटों में से 30 फीसदी सीटों पर दलित वोटर्स की संख्या ज्यादा है. ऐसे में चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा की जोड़ी ने इन दोनों समुदायों के वोटर्स को अपनी ओर खींचने का काम किया. इससे अशोक तंवर के जाने का नुकसान पार्टी को नहीं उठाना पड़ा. जबकि, तंवर ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए बिना किसी का नाम लिए कहा था कि कांग्रेस में अच्छी तरह से अपनी जड़े जमाए बैठे कुछ लोगों को लगता है कि वे भगवान हैं लेकिन लोगों को नष्ट करने के लिए वे राक्षसों की तरह व्यवहार कर रहे हैं.