इसे सीमावर्ती इलाकों में रहने वालों की मुश्किलें कहें या फिर जिन्दगी का रोमांच कि वे अपनी दिनचर्याओं को एक साथ दो देशों में अंजाम देते हैं. नगालैंड के लोंगवा गांव को ही लीजिए जहां का मुखिया खाना म्यांमार में बनाता है लेकिन सोता भारत में है. उसे ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उसके घर का रसोईघर म्यामांर की सीमा में जबकि शयन कक्ष भारत में पड़ता है.
इस गांव में कोन्याक्स रहते हैं जो नगालैंड की सबसे बड़ी आदिवासी जाति है. ये लोग अपनी शिल्प कला के लिए जाने जाते हैं. भारत-म्यांमा सीमा इस दूरस्थ गांव को सीमाई खंभों 144, 145 और 146 के जरिए बांटती है जो गांव के मध्य में स्थापित हैं. यहां सालों से लोग शांतिपूर्ण तरीके से सह अस्तित्व की भावना से रह रहे हैं.
कोई भी पर्वतीय उंचाइयों को पार कर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर लोंगवा गांव पहुंच सकता है जहां के 30 प्रतिशत घर अंतरराष्ट्रीय सीमा के दूसरी ओर पड़ते हैं जहां असम राइफल्स के जवान सीमा की गरिमा को बनाए रखने के लिए पर्वत चोटी से कड़ी निगाह रखते हैं.
1640 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ‘स्वतंत्र आवागमन व्यवस्था’ के चलते भारतीयों को जहां म्यांमार में 20 किलोमीटर भीतर तक जाने की अनुमति है वहीं म्यांमा के लोगों को भारत में 40 किलोमीटर अंदर तक आने की अनुमति है.