अपने राजनैतिक आका के लिए वफादारी का भोंडा प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष चरण दास महंत ने कहा है कि वह सोनिया के कहने पर पोंछा लगाने को भी तैयार हैं. महंत सिर्फ पार्टी अध्यक्ष ही नहीं मनमोहन सरकार के मंत्री भी हैं. वह राज्य मंत्री हैं और उनके पास खाद्य प्रसंस्करण और कृषि विभाग हैं. 25 मई को बस्तर में हुए नक्सली हमले में पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार पटेल की हत्या कर दी गई थी. उसके बाद महंत को राज्य का संगठन सौंपा गया. इस बारे में जब उनसे पूछा गया कि दोहरी जिम्मेदारी वह कैसे निभा पा रहे हैं, तो महंत ने जवाब दिया, 'अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुझसे झाड़ू उठाकर राज्य कांग्रेस दफ्तर साफ करने को कहेंगी, तो मैं वह भी करूंगा.'
नेतृत्व के प्रति सम्मान और पार्टी अनुशासन को चाटुकारिता की चाशनी में डुबो देने वाला यह पहला बयान नहीं है. पहले भी कई चरण चारण गीतों की इस पगडंडी पर चले हैं. इसमें सबसे चर्चित रहा था अस्सी के दशक में देश के राष्ट्रपति बने ज्ञानी जैल सिंह का बयान. जैल सिंह गृह मंत्री थे, जब उन्हें इंदिरा ने राष्ट्रपति पद के लिए चुना. 1982 में राष्ट्रपति बनने के बाद ज्ञानी ने कहा था, 'अगर मेरी नेता कहतीं कि झाड़ू उठाओ और एक जमादार की तरह सफाई करो, तो मैं वह भी करता.'
मगर कांग्रेस के शीर्ष पर यह पहला चारण काव्य नहीं था. उससे पहले भी सुप्रीमो के सामने कद्दावर नेता दंडवत हुए थे. इमरजेंसी के दौर में यानी 1975 से 77 के बीच कांग्रेस के प्रेजिडेंट थे असम के नेता देवकांत बरुआ. उन्होंने कहा था, 'इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा'.
अगर पिछले दशक की बात करें तो जब 2004 में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक चल रही थी, तब भी तारीफों के कई बांध हराहराकर टूटे थे. सेंट्रल हॉल में चल रही इस मीटिंग में जैसे ही ऐलान हुआ कि सोनिया प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं करेंगी, कांग्रेस नेताओं में खलबली मच गई. सब एक-एक कर माइक पर आते और त्याग बलिदान की इस परिपाटी की जय-जयकार करते. बाहर का नजारा और भी दिलचस्प था. कई दलों की सैर कर कांग्रेस में पहुंचे पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत ने आत्महत्या की धमकी दे डाली थी.
एक क्वालिस के बोनट पर चढ़े गंगाचरण ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर कनपटी पर लगा रखी थी. उनका बार-बार कहना था, 'अगर सोनिया जी पीएम नहीं बनीं, तो मैं खुद को शूट कर लूंगा.' जब लोग उनके पास पहुंचने की कोशिश करते, तो वह एक स्टिक से उन्हें दूर भगाते. यह स्टिक उनके पास थी, क्योंकि राजपूत के पैर में फ्रैक्चर था. गौर रहे कि इस चुनाव में वह बुंदेलखंड की हमीरपुर सीट से चुनाव लड़े थे और तीसरे-चौथे नंबर पर रहे थे. तमाशा कुछ देर चला और फिर क्वालिस का ड्राइवर अपनी गाड़ी ले भागा. नेता जी नीचे गिर गए. मगर फिर उठे, संभले और कुछ बरसों में ही बीएसपी में शामिल हो गए.