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'बांग्लादेश युद्ध के हीरो' लेफ्टिनेंट जनरल JFR जैकब का निधन

सेना में 36 साल के करियर में लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब ने द्वितीय विश्व युद्ध और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी बहादुरी दिखाई. 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उन्होंने ही पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण की शर्तें सुनाई.

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बांग्लादेश युद्ध के हीरो कहे जाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब का बुधवार को निधन हो गया. 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में मोर्चा संभालते हुए भारतीय सेना की पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल जैकब सबसे पहले ढाका पहुंचने वाले अधिकारी रहे.

बुधवार सुबह उन्होंने दिल्ली के आर्मी अस्पताल में आखिरी सांस ली. वह करीब 93 साल के थे.

भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी दिखाई
सेना में 36 साल के करियर में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी बहादुरी दिखाई. 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उन्होंने ही पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण की शर्तें सुनाई. जिसमें ये शर्त थी कि पाकिस्तानी सेना न सिर्फ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करेगी बल्कि बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के सामने भी आत्मसमर्पण होगा.

1971 के युद्ध पर लिखी किताब
पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के पास अकेले ढाका में 26 हजार 400 सैनिक थे. लेकिन उन्हें सिर्फ 3000 भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा. इसी जंग के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ जो उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. इस युद्ध में भारत के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए और करीब 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे. इस पूरे घटनाक्रम पर जेएफआर जैकब ने एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम है- सरेंडर एट ढाका- एक देश का जन्म.

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सेना से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने गोवा और पंजाब के राज्यपाल के तौर पर भी काम किया.

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