नई दिल्ली : तलाक के बढ़ते मुकदमों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट परिवारों को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहा है। जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस जी . एस . सिंघवी की बेंच ने एक बच्चे की कस्टडी को लेकर पति और पत्नी के बीच चल रहे मुकदमे की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। "/> नई दिल्ली : तलाक के बढ़ते मुकदमों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट परिवारों को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहा है। जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस जी . एस . सिंघवी की बेंच ने एक बच्चे की कस्टडी को लेकर पति और पत्नी के बीच चल रहे मुकदमे की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। "/> नई दिल्ली : तलाक के बढ़ते मुकदमों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट परिवारों को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहा है। जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस जी . एस . सिंघवी की बेंच ने एक बच्चे की कस्टडी को लेकर पति और पत्नी के बीच चल रहे मुकदमे की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। "/>
 

हिंदू मैरिज एक्ट घरों को तोड़ रहा है!

नई दिल्ली : तलाक के बढ़ते मुकदमों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट परिवारों को जोड़ने के बजाय तोड़ने का काम कर रहा है। जस्टिस अरिजीत पसायत और जस्टिस जी . एस . सिंघवी की बेंच ने एक बच्चे की कस्टडी को लेकर पति और पत्नी के बीच चल रहे मुकदमे की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

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बेंच ने कहा कि तलाक के बढ़ते मामलों का सीधा और बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। अदालत ने कहा कि 1955 में बने कानून में कई बार संशोधन किया गया है। तलाक और दांपत्य जीवन बहाल करने का यह कानून अंग्रेजों के कानून पर आधारित है। बेंच ने तल्ख लहजे में कहा कि आजकल शादी के समय ही अग्रिम तलाक याचिका तैयार कर ली जाती है।

अदालत का मत था कि बच्चे की खातिर मां - बाप को अपने अहं किनारे कर देने चाहिए। आपसी मतभेद भुलाकर बच्चे के भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अदालत ने साफ कहा कि अलग हुए पति - पत्नी की इच्छा के मुकाबले बच्चे का भविष्य ज्यादा महत्वपूर्ण है। अदालत बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर ही अपना फैसला सुनाएगी। अदालत ने कहा कि मियां - बीवी की लड़ाई में खामियाजा बच्चे को भुगतना पड़ता है। अगर संतान लड़की है तो उसे अधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। पैरंट्स से अलग हुई लड़की की शादी में क� िनाई आती है।{mosimage}

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुष्� और मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने के कारण तलाक का प्रावधान है। लेकिन इस प्रावधान का दुरुपयोग भी बहुत है। हमारे पुराने लोगों के सामने इस तरह की समस्या नहीं आती थी। वैवाहिक झगड़े घर की चारदीवारी के अंदर ही सुलझा लिए जाते थे।

मौजूदा मामले में गौरव नागपाल ने अपने 11 साल के बेटे की कस्टडी के लिए याचिका दायर की है। ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी उसकी मां सुमेधा नागपाल को सौंपने का आदेश दिया था।

सुनवाई के दौरान भी पति ने बातचीत के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश की। लेकिन पत्नी ने भरी अदालत में इस प्रस्ताव को � ुकरा दिया। सुमेधा ने पति पर मारपीट का आरोप लगाया। बेंच ने कहा कि अलग हुए पति - पत्नी के अलावा बच्चे से भी चैंबर में बात की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी।

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