उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए हिंदू और ईसाई के बीच शादी को हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के तहत गैरकानूनी माना है. कोर्ट के मुताबिक हिंदू विवाह अधिनियम केवल हिंदू जोड़े को ही शादी के बंधन में बंधने की इजाज़त देता है.
जस्टिस अल्तमस कबीर और आफताब आलम की खंडपीठ ने इस मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है. इस मामले में बंडारू पावनी नाम की हिंदू महिला ने दावा किया था कि उसके इसाई पति गुलीपिली सोवरिया राज ने उसे धोखे में रखा और खुद को हिंदू बताते हुए उससे एक मंदिर में शादी की.
तलाक के लिए मुकदमा लड़ रही पावनी ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने उसे अपनी सामाजिक स्थिति की सही जानकारी नहीं दी. रोमन कैथोलिक राज ने पावनी से 24 अक्टूबर, 1996 को मंदिर में हिंदू रीतियों से शादी की थी. बाद में दोनों की शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड हो गई.
आंध्र प्रदेश की एक अदालत ने तलाक के लिए पावनी की अर्जी यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि हिंदू विवाह अधिनियम ऐसी शादियों को वैध मानता है. हालांकि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस शादी को गैरकानूनी बताया और कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम सिर्फ हिंदुओं के बीच की गई शादियों को ही मान्यता देता है.
इस फैसले के बाद पावनी के पति राज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जहां अदालत ने पावनी के पति की अपील को खारिज करते हुए आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.