अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से सीनियर वकील राजीव धवन ने कहा, 'शिया वक्फ बोर्ड का इस मामले में बोलने का हक नहीं है. राजीव धवन ने आगे कहा, जैसे तालिबान ने बामियान को नष्ट कर दिया था. ठीक उसी तरह हिंदू तालिबान ने बाबरी मस्जिद को नष्ट कर दिया.'
बता दें, शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि वो इस विवाद को शांति से सुलझाना चाहते हैं. शिया वक्फ बोर्ड ने कहा था कि बाबरी मस्जिद का संरक्षक शिया है साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड या अन्य कोई भारत में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
अयोध्या में केवल राम मंदिर बनेगा: वसीम रिजवी
इससे पहले शिया यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा, 'अयोध्या में उस जबह पर कभी मस्जिद नहीं थी और वहां कभी मस्जिद नहीं हो सकती है. यह भगवान राम का जन्मस्थान है और वहां केवल राम मंदिर बनाया जाएगा. बाबर से सहानुभूति रखने वालों की नियति में हार है.'
There was never a Masjid on that site in Ayodhya and there can never be a Masjid there. It is the birthplace of Lord Ram and only a Ram Temple will be built. Sympathizers of Babar are destined to lose: Waseem Rizvi,UP Shia Central Waqf Board Chairman pic.twitter.com/d30C5GqYOs
— ANI (@ANI) July 13, 2018
बता दें, पिछली सुनवाई में वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि, 'इस्लाम में मस्जिद की अहमियत है और यह सामूहिकता वाला मजहब है. इस्लाम में नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है. सामूहिक नमाज मस्जिद में होती है. मस्जिद कोई मजाक के लिए नहीं बनायी गयी थी, हजारों लोग यहां नमाज अदा करते हैं.'
आपको बता दें कि यह विवाद लगभग 68 वर्षों से कोर्ट में है. इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत और अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी.
हाईकोर्ट का विवादित जमीन पर फैसला
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला देते हुए 2.77 एकड़ की विवादित जमीन का एक तिहाई हिस्सा हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई राम लला को दिया था. हाईकोर्ट ने संविधान पीठ के 1994 के फैसले पर भरोसा जताया और हिंदुओं के अधिकार को मान्यता दी.