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फांसी की सजा पर मोदी सरकार का कड़ा रुख, 5 दया याचिकाएं नामंजूर

फांसी की सजा पर बीजेपी के सख्त रुख से तो सभी परिचित हैं. अब मोदी सरकार ने भी पार्टी के इस रुख पर मुहर लगाने का काम किया है. केंद्र में एनडीए की सरकार बने लगभग एक महीने का वक्त हुआ है और मोदी सरकार ने 5 दया याचिकाओं को नामंजूर करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज भी दी है.

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गृह मंत्री राजनाथ सिंह की फाइल फोटो
गृह मंत्री राजनाथ सिंह की फाइल फोटो

फांसी की सजा पर बीजेपी के सख्त रुख से तो सभी परिचित हैं. अब मोदी सरकार ने भी पार्टी के इस रुख पर मुहर लगाने का काम किया है. केंद्र में एनडीए की सरकार बने लगभग एक महीने का वक्त हुआ है और मोदी सरकार ने 5 दया याचिकाओं को नामंजूर करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज भी दी है.

आपको बता दें कि यूपीए के 10 साल के शासन में कई दया याचिकाएं सालों तक लंबित रहीं. उन याचिकाओं में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिका भी थी जो लगभग 7 सालों तक लंबित रही. बाद में फरवरी 2013 में अफजल को फांसी दे दी गई. ऐसा ही एक और मामला है देवेंदर पाल सिंह भुल्लर. भुल्लर को 1993 में यूथ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा पर जानलेवा हमले का दोषी करार दिया था. उस हमले में बिट्टा की जान तो बच गई लेकिन 13 अन्य लोग मारे गए थे. भुल्लर की याचिका भी सालों तक लंबित रही और फैसले में हो रही देरी को को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2014 में उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया.

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जिन 5 दया याचिकाओं को नामंजूर करने की सिफारिश मोदी सरकार ने राष्ट्रपति से की है उनमें निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की याचिका भी श‍ामिल है. सरकारी सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पांच फाइलों पर दस्तखत किए, जिनमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सिफारिश की गई है कि इनकी दया याचिका नामंजूर की जाए.

इन पांच फाइलों में महाराष्ट्र की दो बहनें रेणुकाबाई और सीमा, महाराष्ट्र का ही राजेंद्र प्रहलादराव वासनिक, उत्तर प्रदेश का सुरेंद्र कोली, मध्य प्रदेश का जगदीश और असम का होलीराम बोर्दोलोई हैं. इन पांच में से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यालय ने सीमा और रेणुकाबाई तथा जगदीश की फाइलें गृह मंत्रालय को समीक्षा के लिए वापस भेजी थीं, क्योंकि पिछली सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में राष्ट्रपति सचिवालय को ये फाइलें भेजी थीं.

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कोली ने उत्तर प्रदेश में दिल्ली से सटे नोएडा के निठारी इलाके में बर्बर वारदात को अंजाम दिया. 42 वर्षीय कोली ने बच्चों की बर्बर हत्या की और बाद में उनके टुकड़े टुकड़े कर डाले. उसकी मौत की सजा की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 में की थी. कोली के खिलाफ 16 मामले दर्ज हुए, लेकिन उसे अब तक चार मामलों में ही मौत की सजा सुनाई गई है. अन्य मामले अभी विचाराधीन हैं.

महाराष्ट्र की दोनों बहनों रेणुकाबाई और सीमा ने अपनी मां और एक अन्य साथी किरण शिन्दे की मदद से 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों का अपहरण किया, जिनमें से नौ की हत्या कर दी‌, अभियोजन पक्ष हालांकि केवल पांच हत्याएं ही साबित कर पाया और दोनों बहनों को मौत की सजा मिली. उनकी मां की 1997 में मौत हो गयी जबकि शिन्दे इस मामले में सरकारी गवाह बन गयी. ये लोग गरीब बच्चों को उठाते थे. उनसे जबरन चोरी, चेन छीनने और सामान उठाने के कार्य कराते थे. लेकिन जब बच्चे इतने बड़े हो जाते कि वे मामलों को समझने लगते तो उनका सिर दीवार से पटक कर, रेलवे पटरी पर ट्रेन के आगे डालकर, लोहे की छड़ों से पीटकर या गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी जाती थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2006 को उनकी मौत की सजा की पुष्टि की थी. तीसरा मामला महाराष्ट्र के असरा गांव का है जहां एक बच्ची की बर्बर हत्या कर दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2012 में राजेन्द्र प्रह्लादराव वासनिक की मौत की सजा बरकरार रखी. उसे पीड़‍िता के यौन उत्पीड़न और हत्या का दोषी करार दिया गया था. उसकी दया याचिका महाराष्ट्र के राज्यपाल ने नामंजूर कर दी थी.

गृह मंत्रालय ने जगदीश की दया याचिका नामंजूर करने की भी सिफारिश की है. उसने अपनी पत्नी, चार बेटियों और एक बेटे की हत्या कर दी थी. उसके बेटे बेटियों की उम्र एक से 16 साल के बीच थी. मंत्रालय ने असम के होलीराम बोर्दोलोई की दया याचिका भी नामंजूर करने की सिफारिश की है. बोर्दोलोई ने गांव वालों के सामने सरे आम एक परिवार के तीन पुरुषों की नृशंस हत्या कर दी थी.

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