प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नरेन्द्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाएंगे. पीएम ने साढ़े चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है लेकिन विस्थापित कश्मीरी पंडित अभी भी जम्मू शहर के बाहर बने रिफ्यूजी कैंपों में रहने के लिए मजबूर हैं. इंडिया टुडे के सुनील भट्ट ने जम्मू के बाहर जागती रिफ्यूजी कैंप का दौरा किया और जानने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक विस्थापित कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने के लिए क्या किया है.
जागती राहत कैंप का जायजा लेने पहुंची इंडिया टुडे की टीम को कैंप में बने फ्लैट्स की दीवारें चटकी मिलीं और सीवर लाइनों में लीकेज मिला. कैंप के कई फ्लैट ऐसी अवस्था में हैं जिन्हें देखकर कहा जा सकता है कि वह किसी भी समय दरक कर ढह सकते हैं. राहत कैंप में यह फ्लैट विस्थापित कश्मीरियों को 2011 में आवंटित किए गए थे. 2014 में चुनाव लड़ रही भाजपा ने उनसे वादा किया कि वह जागती के इस राहत कैंप को सैटेलाइट टाउन की तरह विकसित करते हुए सभी सुविधाओं से लैस करने का काम करेंगे. हालांकि इन फ्लैट्स की जर्जर हालत को देखते हुए साफ लग रहा है कि यह किसी भी समय ढह सकते हैं और यहां रहने वाले शरणार्थियों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं.
बीते चार साल के दौरान राहत कैंप में रहने वाले शरणार्थी लगातार सरकारी कार्यालयों का चक्कर काट रहे हैं लेकिन कहीं भी इनकी सुनवाई नहीं की जा रही है. इन कैंपों में कुछ लोगों का यह दावा भी है कि राहत कैंप में फ्लैट का निर्माण घटिया सामग्री का इस्तेमाल करते हुए किया गया है जिसके चलते ये फ्लैट्स गिरने के कगार पर हैं.
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राहत कैंप में पहुंचकर कुछ लोगों से बात करने पर पता चला कि यहां के लोग मोदी सरकार से नाराज हैं और उनका मानना है कि सरकार ने उन्हें न्याय देने का वादा करके उनसे मुंह मोड़ लिया है. एक विस्थापित कश्मीरी पंडित वीर जी संब्ली ने कहा कि 2014 के बाद उन्हें मोदी सरकार से बड़ी उम्मीद थी लेकिन पूर्व की सरकारों की तरह यह सरकार भी उन्हें न्याय दिलाने में पूरी तरह से विफल रही है.
एक अन्य शरणार्थी ज्योति ने कहा कि केन्द्र में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद वे बेहद खुश थीं लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी ने साढ़े चार साल में हमारे लिए क्या किया? ज्योति ने कहा कि उनके परिवार को नरेन्द्र मोदी से बड़ी उम्मीद थी लेकिन अब वह सिर्फ टीवी पर भाइयों और बहनों कहते पाए जाते हैं. ज्योति को इस राहत कैंप में तब लाया गया जब 2011 में उनके ससुर का आतंकियों ने कत्ल कर दिया था. ज्योति श्रीनगर के हब्बाकडाल की रहने वाली हैं.
गौरतलब है कि इस कैंप में बने फ्लैट्स का निर्माण 2011 में पूरा हुआ था और शरणार्थियों को आवंटित किया गया. फ्लैट के निर्माण को 8 साल हो चुके हैं. सीवर पाइप से बहते पानी के चलते ये फ्लैट्स आज गिरने के कगार पर हैं. सैटेलाइट टाउन बनाने और सुविधाओं से लैस करने का वादा आखिर कहां गया?
इन राहत कैंपों में रह रहे युवाओं की हालत और भी बदतर है. कैंप में रह रहे सूरज शर्मा का सवाल है कि आखिर वह नौकरियां कहां गईं जिसका वादा 2014 में उनसे किया गया था.
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इस राहत कैंप में कुछ मकानों में निर्माण कार्य भी चल रहा है. कैंप में रहने वालों ने बताया कि हाल ही में राज्य सरकार ने मरम्मत के काम को मंजूरी दी है जिसके चलते कुछ फ्लैटों में मरम्मत का काम धीरे-धीरे चल रहा है. फ्लैट्स की स्थिति पर जब क्षेत्रीय अधिकारियों से बात की गई उन्होंने दावा किया कि चरणबद्ध तरीके से फ्लैट्स के मरम्मत का काम किया जा रहा है. जम्मू-कश्मीर सरकार ने राहत कमिश्नर मनोहर लाल रैना ने माना कि कैंप में कुछ मुद्दे हैं लेकिन मरम्मत का काम कानूनी अड़चनों के चलते शुरू नहीं किया जा सका. फिलहाल फ्लैट्स के मरम्मत के लिए सरकार ने 10 करोड़ रुपये का बजट दिया है और काम शुरू हो चुका है.
राहत कैंप की खराब स्थिति पर राजनीति भी हो रही है. राज्य में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के चलते कश्मीरी पंडित राहत कैंपों से निकलकर अपने घर नहीं जा पा रहे हैं. यूपीए सरकार के कार्यकाल में कई कश्मीरी पंडित परिवारों को श्रीनगर में वापस बसाने में सफलता मिली थी और लगभग 3000 लोगों को नौकरी दी गई. वहीं बीजेपी नेता रविंदर रैना ने कहा कि यह मोदी सरकार की प्राथमिकता है कि वह जल्द से जल्द ऐसा माहौल पैदा करे जिससे कश्मीरी पंडितों को उनके घर भेजा जा सके.
घाटी से कश्मीरी पंडितों के निर्वासन को 29 साल हो चुके हैं और एक के बाद एक सरकारों से केवल वादे मिले हैं. लेकिन अभी तक उनके पुनर्वास के लिए किसी ने कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है.