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दिल्ली का अस्पताल है या मुर्दों की बस्ती

मासूमों की मौत के मामले में दीनदयाल उपाध्‍याय अस्‍पताल का नाम सामने आया है. पिछले 6 सालों में इस अस्पताल में 4100 बच्चों ने दम तोड़ दिया.

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मासूमों की मौत के मामले में दीनदयाल उपाध्‍याय अस्‍पताल का नाम सामने आया है. पिछले 6 सालों में इस अस्पताल में 4100 बच्चों ने दम तोड़ दिया.

पश्चिमी दिल्ली की नब्ज कहे जाने वाले अस्पताल दीनदयाल उपाध्याय की खुद अपनी नब्ज थम रही है. जिसका काम है मरीजों का इलाज करना उस अस्पताल को आज खुद इलाज की जरुरत है. जिन्दगी देने वाला अस्पताल आज खुद रूक-रूक कर सांस ले रहा है.

आरटीआई से ये बात सामने आई है कि 2007 से साल 2012 के अक्टूबर तक यानी कि पिछले 6 साल में यहां 4100 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई है. यानी ये अस्पताल हर रोज करीब दो बच्चों को निगल जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं आरटीआई के मुताबिक इस अस्पताल में बच्चों पर क्लीनिकल ट्रायल भी होते है.

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सिर्फ इतना ही नहीं नवजात बच्चों के खास केयर के लिए बनी नर्सरी में भी मौतों का सिलसिला चौकाने वाला है. यहां पिछले 6 साल में करीब 1922 नवजात बच्चों की नर्सरी में मौत हुई है.

कैग रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार के अस्पतालों में तेजी से फैल रहे बंदइतामी और लापरवाही के वायरस की पोल खोल दी है. जल्दी ही इस इन्फेक्शन का इलाज जरुरी है क्योंकि हर रोज हो रही है यहां किसी ना किसी मासूम की मौत.

इस अस्पताल की दिल्ली को कितनी जरूरत है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 6 साल में यहां 52 हजार से ज्यादा डिलीवरी हुई है. लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी से ये अस्पताल लोगों को खुशिया कम दुख ज्यादा दे रहा है. यहां सिर्फ 12 वेंटिलेटर हैं. अब आप खुद अंदाजा लगा लीजिए जहां हर साल 8 से 12 हजार तक डिलीवरी होती है वहां नवजातों को बचाने के लिए क्या ये वेंटिलेटर काफी हैं. आरटीआई याचिकाकर्ता का आरोप है कि वेंटिलेटर की कमी की वजह से ही यहां बच्चों का दम घुटता है.

कुछ ऐसे ही आंकड़े पूर्वी दिल्‍ली के चाचा नेहरू बाल चिकित्‍सालय से भी सामने आया है. आरटीआई से मिले आंकड़ों के मुताबिक चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में 6 साल में 4400 बच्चों की मौत हुई. इस आंकड़े के मुताबिक हर रोज दो से ज्यादा बच्चों की मौत यहां होती है.

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