9000 से 18700 फीट की ऊंचाई के बीच घटते बढ़ते 3488 किमी लंबे हिमालयी पर्वत क्षेत्र, शून्य से भी माइनस 40 डिग्री नीचे के पारे में चिलचिलाती सर्दीली जगहों, अथाह घाटियों, दुर्गम गड्ढों, खतरनाक नदियों, अनसुने ग्लेशियरों, पथरीली ढालों और अदृश्य प्राकृतिक खतरों के बीच आईटीबीपी के जवान और अधिकारी अपने सेवा काल का एक बड़ा हिस्सा बिताते हैं. इनका काम उन खतरनाक काराकोरम दर्रे से लेकर अरुणाचल प्रदेश में दिफू ला तक विस्तृत है.
आईटीबीपीएफ का बहादुर कमांडो 'बहादुरी और निष्ठापूर्ण प्रतिबद्धता' के स्लोगन के साथ, अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और इंसानी या प्राकृतिक, किसी भी तरह की कठिन परिस्थिति में अडिग रहता है. 18 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर है बर्फ की एक बेजान दुनिया. जहां की जमीन के साथ आसमान भी जिंदगी का दुश्मन है लेकिन बर्फ की इस बंजर दुनिया में इंसानी कदमों की आहट गूंजती है. ये कोई आम इंसान नहीं, बल्कि वो जांबाज ITBP के हिमवीर हैं जो भारत-चीन के बीच सरहद की निगहबानी में डटे हैं. हिमालय की गोद में रहते हुए ये जवान सरहद की सुरक्षा इस बर्फ़ीले इलाके में करते हैं. जितना खतरा दुश्मनों से नहीं होता है उससे कहीं ज्यादा खतरा इस पूरे क्षेत्र में फैली बर्फ की चादर से होता है.
एक जानकारी के मुताबिक हाई एल्टीट्यूड में जवानों पर मौसम की मार इतनी ज़्यादा पड़ती है कि उनको उससे उबर पाना काफी मुश्किल होता है. ये जवान जब बर्फ़ीले इलाके में चलते हैं तब इनको इस तापमान में जाने से पहले ITBP के ट्रेनर कई दिनों तक स्टेप बाई स्टेप अलग अलग तापमान वाले एल्टीट्यूड में रखा जाता है. उसके बाद जब ये जवान बर्फ़ीले इलाके में रहने के लिए अभ्यस्त हो जाते हैं तब इन जवानों को सबसे ऊपर यानी 18,700 फ़ीट की ऊंचाई पर भारत चीन सीमा की बीओपी में तैनात किया जाता है. इस बर्फ़ीले एरिया में जवानों के लिए कई कठिनाइयां भले ही आती हो पर देश की आन-बान और शान के लिए हमेशा ये ITBP के जवान जान जोखिम में डालते हैं.
बर्फ़ीले इलाके में सरहद की निगरानी ये पहनकर करते हैं जवान
बाल कलावा- ये रेशम और ऊन का बना होता है ये इस बर्फिस्तान में जवानों को ठंड से बचाता है.
1 स्नो गॉगल- जवानों को अल्ट्रा वायलेट किरण से बचाती है. जब स्नो पर सूर्य की किरण पड़ती है तो जवानों को कलर ब्लाइंडनेस का ख़तरा रहता है ये स्नो गॉगल उस खतरे से भी बचाता है.
2 चेहरे पर सन स्क्रीन- क्योंकि हाई एल्टीट्यूड में UV किरण ज्यादा पड़ती है और जवानों को काला कर देती है इसलिए सन स्क्रीन लगाया जाता है.
3 AVD (एवलांच विक्टिम डिवाइस)- जब जवान एवलांच प्रोन एरिया से जाते हैं तब ये यंत्र अगर कोई बर्फ के पहाड़ के नीचे एवलांच आने से दब जाता है तब उनको ढूढ़ने में काम आता है.
4 बैग पैक- इसमें रेडी मेड फ़ूड पैक, जवानों का राशन, स्टोव, एवलांच कॉर्ड, ड्राई फ्रूट्स, चॉकलेट, दलिया आदि रहता है.
5 आधुनिक जूते- जवानों के जूते खास तरीके के बनाए जाते हैं जब जवान इस जूते को पहनते हैं तो शरीर के धर्षण से ये जूते अंदर काफी गरम हो जाते हैं.
जवानों के लिए ऐसे होता है 'ऑपरेशन एवलांच'
जवान जब सरहद की हिफाजत कर रहे होते हैं तो उन पर एक अदृश्य खतरा एवलांच का रहता है. इस एवलांच के आने के बाद जवान बर्फ के पहाड़ के नीचे दब जाते हैं. आख़िर कैसे होता है पूरा रेस्क्यू ऑपरेशन और कैसे आता है एवलांच. आपको बता दें कि सियाचिन में छह दिन तक करीब तीस फीट बर्फ के नीचे भी जिंदा बचकर निकलने वाले सेना के जवान हनुमंथप्पा को हालांकि बचाया नहीं जा सका था पर इससे सीख जरूर मिलती है. 3 फरवरी 2016 को जब सियाचिन की सोनम पोस्ट, 19 हजार 600 फीट की उंचाई पर हनुमंथ्पा और बाकी 9 जवान तैनात थे तब कुदरत का सबसे खौफनाक हमला हिमस्खलन के तौर पर हुआ. बर्फ की चट्टान उनकी पोस्ट पर आकर पलभर में गिरी और फिर सबकुछ शांत हो गया. 1 किलोमीटर चौड़ी और 800 मीटर ऊंची बर्फ की एक दीवार उनके कैंप पर आ गिरी थी. और सारे जवान दब गए थे. यहां ये सब इस लिए बता रहे हैं कि आर्मी की तरह ITBP भी हाई एल्टीट्यूड में तैनात रहती है. जहां पर अगर कोई एवलांच या फिर हिमस्खलन होता है तो जवान ऐसे बचते हैं.
रेडियो सिग्नल
रेडियो सिग्नल तब काम आता है जब पोस्ट पूरी तरह से बर्फ मे दब चुकी होती है. लेकिन ये सिग्नल डिवाइस 20 फुट नीचे तक का किसी भी मोबाइल या सैटेलाइट फोन का सिग्नल कैच कर सकता है. रडार EQUIPMENT 20 फीट नीचे किसी भी थर्मल-सिग्नेचर, हीट या मैटेल को डिटेक्ट कर सकता है. बचाव दल ने सबसे पहले वहां जाकर मेडिकल सहायता के लिए पोस्ट तैयार किया. इसके बाद टीम ने पोस्ट के आसपास के इलाके में स्पॉट पता लगाए जहां पर रेडियो सिग्नल और स्पेशल रडार को हलचल मिल रही थी. एक-एक कर सभी स्पॉट्स को बारीकी से खोदा गया. रॉक-ड्रिल से ICE-BOULDERS यानी बर्फ की चट्टान जो दीवार या छत से भी ज्यादा मजबूत होती है उसे काटा जाता है. कई फीट पर बचाव दल को आर्कटिक टैंट दिखा दरअसल इन खास तरह के टेंटों में ही 18000 की फ़ीट में पोस्ट तैयार की जाती हैं. 'इग्लू' में माइनस 40 डिग्री जान बचाने के लिए जवान कई-कई महीनों तक रहते हैं.
बर्फ का बना हुआ घर यानी इग्लू ऐसे घरों का इस्तेमाल अंटार्कटिका में रहने वाले लोग करते हैं. पर ITBP के जवान जब भी हाई एल्टीट्यूड में सरहद की रक्षा करते हैं तब ऐसे बर्फ के बने अस्थाई शेल्टर में रहते हैं. ये शेल्टर ITBP के जवान 4 से 5 घंटो में बना लेते हैं.
इग्लू में ऐेसे बनता है जवानों का खाना
जब जवान किसी बर्फ़ीले इलाके में सरहद की रक्षा करते करते वहीं सरहद पर रुकते हैं जहां स्थाई शेल्टर नहीं होते वहां पर अस्थाई शेल्टर बना कर अंदर का तापमान मेंटेन करते हैं. फिर इसके अंदर 6 से 7 जवान अपने हथियार के साथ कई दिनों तक रह सकते हैं. इस बर्फ के बने घर में आम लोगों का रहना बड़ा ही मुश्किल हो सकता है पर देश की सरहदों की रक्षा करने वाले ये जवान इसके अंदर रहते हैं. खाने के अलावा होता है रेडीमेड फ़ूड और ड्राई फ्रूट.
बर्फिस्तान के अंदर बर्फ के बने इस घर में जवानों के पास बादाम, काजू, किशमिश, चॉकलेट, बटर, मिक्स जूस, दलिया, बिस्किट, जैसे सामान इस इग्लू के अंदर रहते हैं.
'स्नो केव' में करते हैं आराम
जब हमें आराम करना होता है तो हम गर्म बिस्तर ढूंढते हैं पर हमारे ये बहादुर सिपाही देश की रक्षा करने के लिए बर्फ ही ओढ़ते है, वही बिछाते हैं और उसी का घर होता है. ड्यूटी के दौरान जवानों को शून्य से कम तापमान में रहना होता है. वहां पर बर्फ की गुफा बनाकर देश की रक्षा करते हैं. इस बर्फ की गुफा के अंदर 2 लोग रह सकते हैं. जवान शरीर की गर्मी से अंदर का तापमान मेंटेन करते हैं.
पुरुषों से कम नहीं हैं महिला कमांडो
भारत-चीन सीमा पर स्थित 15 चौकियों पर कुछ महीने आईटीबीपी की महिला कमांडो तैनात की गई हैं. जिनकी दुश्मनों पर 24 घंटे पैनी नजरें रहेंगी. ये महिला कमांडों हर किसी मुसीबत का सामना करने में सक्षम हैं. ये महिला कमांडों हाई एल्टीट्यूड पर माइनस तापमान में देश की सरहदों की रक्षा कर रही हैं. ये महिला कमांडो पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हाई एल्टीट्यूड में अपनी जान की बाजी लगाकर देश की सरहदों की रक्षा कर रही हैं.
सरहद की हिफाजत करते वक्त होती है जवानों को ये बीमारी
सियाचिन और देश के दूसरे इलाकों में बहुत अधिक बर्फ है, जिसके कारण सियाचिन में तैनात जवानों की मौत दुश्मन की गोली से तो कम बल्कि खराब मौसम के कारण ज्यादा होती है. एवलांच और खराब मौसम के कारण पिछले 12 साल में सियाचिन में 900 सेना के जवानों की मौतें हो चुकी हैं. हालांकि सिर्फ सियाचिन ही नहीं जिन जिन इलाकों में ITBP तैनात हैं वहां भी माइनस 40 डिग्री तक तापमान चला जाता हैं. जिससे वहां पर ड्यूटी करने वाले जवानों को हाइपो और गैंगरीन जैसी बीमारी हो जाती हैं और अगर उनका इलाज़ सही समय पर नहीं होता है तो जवानों की मौत भी हो जाती है.
ये सीखकर बॉर्डर पर मुस्तैद रहते हैं जवान
1 आईटीबीपी पर्वतारोहण में दक्ष बल है.
2 इन्हें पर्वतारोहण की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है.
3 आइटीबीपी जवानों को एडवेंचर स्पोर्ट्स की विशेष ट्रेनिंग देता है.
4 आइटीबीपी जवानों को हाई एल्टीट्यूड में सर्वाइवल की विशेष ट्रेनिंग देता है.
5 आइटीबीपी में माउंटेन वारफेयर की विशेष तैयारी ट्रेनिंग का हिस्सा होती है.
6 माउंटेनियरिंग, स्कीइंग, रिवर राफ्टिंग, रॉक क्लाइम्बिंग में दक्षता.
7 जंगल वारफेयर की ट्रेनिंग दी जाती है.
8 हाई एल्टीट्यूड में रेंजर्स की ट्रेनिंग विशेष है.
9 रॉक क्राफ्ट और आइस क्राफ्ट और ग्लेशियर ट्रेनिंग आइटीबीपी में माउंटेन ट्रेनिंग का अहम हिस्सा है.
10 आइटीबीपी में हाई एल्टीट्यूड में रेस्क्यू ऑपरेशन की विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है.
बर्फ में जवानों ये ट्रेनिंग दी जाती है
1 बेसिक स्किल्स से किया जाता है शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार
2 माउंटेनियरिंग, स्कीइंग
3 हाई एल्टीट्यूड में मनोबल बनाये रखना
4 टीम में काम करना
5 स्नो कॉम्बैट स्किल
6 गुरिल्ला लड़ाई, सर्वाइवल के तरीके
7 अलग अलग अभियानों आदि की ट्रेनिंग
8 कॉन्फिडेंस बिल्डिंग
9 फायरिंग
10 लगातार अभ्यास
आइटीबीपी से जुड़े महत्त्वपुर्ण बिंदु
1 माउंटेन वारफेयर में दक्ष
2 एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए विश्व विख्यात
3 पर्वतारोहण में विश्व विख्यात- 205 से अधिक सफल अभियान, 4 बार माउंट एवेरेस्ट पर आरोहण
4 हिमालय पर 9000 से 18700 फ़ीट तक की ऊंचाई पर 1962 से लगातार तैनात
5 पहली बार महिलाओं को हाई एल्टीट्यूड सीमा पर निगरानी के लिए तैनात किया
6 अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय दूतावास और वाणिज्य दूतावास पर फिदायीन हमले नाकाम किये
7 बर्फीली सरहद पर तैनाती के कारण आइटीबीपी के जवानों को हिमवीर कहा जाता है
8 आइटीबीपी का के 9 श्वान दस्ता गणतंत्र दिवस और विशेष अवसरों पर सुरक्षा के लिए विख्यात
9 छत्तीसगढ़ में एंटी नक्सल आपरेशन के लिए बल की 8 बटालियन तैनात
10 हिमालय पर 3488 किलोमीटर बर्फीली सरहद पर है तैनाती
11 यूएन मिशन में आइटीबीपी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है
12 आइटीबीपी के कमांडो का कौशल विख्यात है
13 दो बार गंगा रिवर राफ्टिंग के माध्यम से स्वच्छ गंगा का संदेश दिया
14 आइटीबीपी को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति भवनोंऔर राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा की जिम्मेवारी भी दी गई है.