विश्व हिंदू परिषद ने दलितों के साथ होने वाली छुआछूत दूर करने के नाम पर प्रोग्राम शुरू किया है 'हिंदू परिवार मित्र'. लेकिन यह कार्यक्रम उनके सामाजिक उत्थान से ज्यादा धर्म परिवर्तन और घर वापसी जैसे कार्यक्रमों से जोड़ देखा जा रहा है.
दरअसल, पिछले साल छुआछूत के दो राजनीतिक मामले सुर्खियों में आए. फरवरी, 2014 में नरेंद्र मोदी और सितंबर, 2014 में जीतन राम मांझी ने बताया कि किस तरह वे लोग भी छुआछूत के शिकार होते रहे हैं. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, जबकि जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री.
कोच्चि में एक दलित फोरम के कार्यक्रम में मोदी ने कहा, 'मैं आज भी अनटचेबिलिटी का शिकार होता रहा हूं.' फिर उन्होंने एक बेहतर भविष्य की उम्मीद भी जताई, 'बड़े आत्मविश्वास से कहना चाहता हूं कि आजादी के 60 साल में जो भी उतार चढ़ाव आए हों... जिसका भी प्रभाव रहा हो... लेकिन मेरे शब्द लिख कर के रखिए आने वाले दस साल... हिंदुस्तान में दलित, पीड़ित शोषित पिछड़े अति पिछड़े... इन्हीं की बात चलने वाली है.'
पटना में एक कार्यक्रम में मांझी ने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान मधुबनी के जिस मंदिर में उन्होंने पूजा-अर्चना की, वहां उनके जाने के बाद लोगों ने मूर्ति और मंदिर परिसर की धुलाई की. मांझी के मुताबिक उस घर को भी धोया गया, जहां वो कुछ वक्त के लिए ठहरे थे.
छुआछूत के खिलाफ वीएचपी का अभियान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बाद अब विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने भी छुआछूत के खिलाफ मुहिम चलाने का फैसला किया है. वीएचपी की इस मुहिम को नाम दिया गया है - 'हिंदू परिवार मित्र'. इस योजना के तहत सवर्ण लोग दलितों के साथ खाना खाएंगे और उसके बाद उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाली जाएंगी.
आखिर क्या है 'हिंदू परिवार मित्र' योजना? आइए जानते हैं -
बड़ों की जिम्मेदारी
1. इस योजना के तहत हर सवर्ण परिवार एक दलित परिवार से मैत्री संबंध बनाएंगे. एक-दूसरे के घर आएंगे-जाएंगे. सुख-दुख की घड़ी में दोनों परिवार साथ दिखाई देंगे.
2. ऐसे दो परिवार एक साथ बैठकर घर में खाना खाएंगे, न कि किसी होटल में जाकर या किसी ढाबे पर. जब दोनों परिवार घूमने निकलें तो घर का बना खाना लेकर जाएंगे और आपस में मिल-बांटकर खाएंगे.
बच्चों की जिम्मेदारी
जब दोनों परिवार साथ बैठकर खाना खा रहे होंगे तो घर के बच्चे या किशोर जो भी साथ में हों, वे उनकी तस्वीर लेंगे. उसके बाद उन्हें ये तस्वीर व्हाट्सऐप, फेसबुक पर शेयर करनी होगी.
बताते हैं कि इसके लिए वीएचपी के कार्यकर्ता गांव-गांव पहुंचकर जातीय समुदायों के साथ मीटिंग करेंगे और उन सबको परस्पर हिंदू एकता बनाने का संदेश देंगे.
बहुत कठिन है डगर पनघट की
परिवार मित्र बनाने की इस राह में रोड़े बहुत हैं. शहरों की बात अब और है लेकिन गांवों में हालात अब भी नहीं बदले हैं.
1. मान लेते हैं कि हिंदू समाज के सवर्ण तबके के लोग दलित परिवार के लोगों से दोस्ती कर लेंगे. इससे अच्छी बात आखिर हो भी क्या सकती है. जहां छुआछूत व्याप्त है, वहां क्या वीएचपी कार्यकर्ता लोगों को ये बात समझा पाएंगे? क्या वीएचपी का हिंदू समाज पर इतना असर है कि उसकी बात लोग मान लेंगे? और अगर लोग नहीं माने तो क्या वीएचपी कार्यकर्ता बलपूर्वक उनसे ये काम कराएंगे?
2. शहरों में सवर्ण और दलित पड़ोसी हो सकते हैं. अगल-बगल फ्लैट में ऐसे लोग मिल जाएंगे. लेकिन बहुत से गांवों में तो दलितों की बस्ती ही अलग बसाई गई है. दलित परिवार के लोग सवर्णों के यहां आते हैं और खाना खाते हैं. शादी के मौके पर उन्हें खाना खिलाया तो जाता है लेकिन आखिर में. अगर दलितों के यहां शादी होती है तो सवर्ण लोगों में से कुछ ऐसे जरूर हैं जो उनके यहां आशीर्वाद देने जाते हैं. लेकिन उनमें से कितने वहां खाना भी खाते हैं? वीएचपी ऐसा कौन सा चमत्कार करेगी कि ये भेदभाव मिट जाएंगे?
3. 'हिंदू परिवार मित्र' योजना में साथ खाने का फोटो सोशल मीडिया पर डालने की व्यवस्था दी जाएगी. इससे एक स्वाभाविक मैसेज तो ये जरूर जाएगा कि सभी साथ साथ खाना खा रहे हैं, लेकिन क्या प्रचारित भी वाकई यही बात होगी? खाना खाने वाले क्या जोर-शोर से ये नहीं बताएंगे कि उन्होंने ऐसा किया. यानी खाने के बाद भी बताएंगे कि जिनके साथ उन्होंने खाना खाया वे दलित हैं.
4. मित्रता स्वाभाविक तौर पर होती है. साथ में पढ़ाई के चलते, पड़ोसी होने के नाते या फिर ऐसी ही किसी और वजह से. क्या किसी अभियान के तहत मित्रता हो सकती है. ऐसा तो तभी संभव है जब लोगों को बदले में कुछ मिलता हो या फिर कोई स्वार्थ हो. व्यावसायिक संबंधों के चलते परिवारों में मित्रता हो जाती है. लेकिन अक्सर ऐसी दोस्ती व्यावसायिक संबंध न रहने पर खत्म भी हो जाती है. इसके लिए वीएचपी क्या उपाय करने वाली है. क्या वीएचपी की ओर से इसके लिए कोई रिवॉर्ड भी दिया जाएगा?
पेशवाओं के शासनकाल में अछूतों को उस सड़क पर चलने की छूट नहीं थी जिस पर कोई सवर्ण हिंदू चल रहा हो. अछूतों को अपनी कलाई में या गले में काला धागा बांधने को कहा जाता था, ताकि सवर्ण इन्हें गलती से कहीं छू न लें. इस सामाजिक बंटवारे को ही सांप्रदायिक बंटवारे का सबसे बड़ा कारण माना जाता है. बरसों से तकरीबन सभी सियासी दलों की राजनीति इसी सामाजिक और सांप्रदायिक बंटवारे के बूते चलती रही है.
जब दलितों के घर जाकर राहुल गांधी खाना खा रहे थे तो उनकी आलोचना होती रही कि वो ढोंग कर रहे हैं. मायावती से लेकर बाबा रामदेव तक सभी ने जाने क्या क्या न कहा. हालांकि बाद में ऐसी खबरें भी आईं कि राहुल ने दोबारा उनकी ओर कभी नजर उठाकर नहीं देखा.
अब आरएसएस और फिर वीएचपी ने इसके लिए अभियान चलाने का फैसला किया है. हाल ही में आरएसएस ने सभी हिंदुओं के लिए 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान भूमि' की अवधारणा पर आगे बढ़ने का फैसला किया. संघ को समझ आ गया है कि हिंदू समाज के अंदर भेदभाव को खत्म किए बगैर उसे एकजुट नहीं किया जा सकता.
अगर वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया को इस अभियान में थोड़ी भी सफलता मिलती है तो निश्चित रूप से लोग उनके जहरीले भाषणों को भूल कर उन्हें उसी रूप में याद करेंगे जिस तरह स्वामी दयानंद सरस्वती और महात्मा गांधी को याद करते हैं.