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विदेश नीति पर मोदी ने ऐसे किया कमाल

अब तक स्‍थानीय राजनीति हावी थी, लेकिन भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर समझौते ने साबित कर दिया है कि विदेश नीति पर मोदी सरकार वाकई कमाल दिखा रही है. यह बड़ी कामयाबी है.

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विदेश नीति vs स्थानीय राजनीति
विदेश नीति vs स्थानीय राजनीति

अब तक स्‍थानीय राजनीति हावी थी, लेकिन भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर समझौते ने साबित कर दिया है कि विदेश नीति पर मोदी सरकार वाकई कमाल दिखा रही है. यह बड़ी कामयाबी है.

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यह मामला इतना बड़ा क्यों है?
बांग्लादेश के साथ हुआ ज़मीन से जुड़ा समझौता अंजाम तक पहुंचने को है, जिससे..
- साल 1974 से जारी 6.1 किलोमीटर सरहद विवाद का निपटारा हो सकता है.
- बांग्लादेश में 111 भारतीय एनक्लेव और भारत में बसे 51 बांग्लादेशी एनक्लेव को राहत मिलेगी इसमें राज्यों का मामला भी है.

सभी पक्ष राजी भी हैं

इस समझौते को लेकर सभी पक्ष हामी भर चुके हैं.
> असम सरकार अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार है
> पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मेघालय ने भी मान लिया है.
> कांग्रेस भी शुरुआती समझौते को समर्थन देने पर राजी है.

मोदी ने बड़ा कदम उठाया है.
इस मुद्दे पर भाजपा का रुख बदलता रहा है.
2013: भाजपा ने यूपीए सरकार के
2011: समझौते का विरोध किया
2014: मोदी ने कहा कि इस समझौते से असम को घुसपैठ समस्या से निजात मिल सकती है.
अप्रैल 2015: भाजपा ने इस समझौते से असम को बाहर रखने का फैसला किया.
मई 2015: असम सरकार और कांग्रेस के विरोध के बाद भाजपा शुरुआती समझौते को लेकर राजी हो गई.

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अब तक भाजपा असम पर अटकी थी?
> असम को इस समझौते में जमीन नहीं मिली, उसे सिर्फ देनी है.
> भाजपा की असम इकाई ज़मीन देने के मामले में राजी नहीं है.
> और इस राज्य में साल 2016 में विधानसभा चुनाव भी होने हैं.

बीजेपी फैसला क्यों नहीं कर पाई?
दरअसल, असम में पार्टी को काफी-कुछ दिख रहा है, जिसकी वजह से समझौते पर उसे दोबारा विचार करना पड़ रहा था.
पहला मौका
2014 लोकसभा चुनावों में बढ़िया प्रदर्शन

दूसरा मौका
बीजेपी ने असम निकाय चुनाव जीते.

इसी साल फरवरी में हुए निकाय चुनावों को विधानसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना गया.
> बीजेपी ने 38 म्यूनिसिपल निकायों के तहत आने वाले 340 वार्ड जीते.
> कांग्रेस 17 म्यूनिसिपल निकायों के तहत आने वाले 232 वार्ड जीत सकी.

तीसरा मौका

सत्ता विरोधी लहर
कांग्रेस इस राज्य में लगातार तीन बार से सत्ता संभाल रही है, ऐसे में बीजेपीको सत्ता विरोधी लहर का फायदा हो सकता है.
अगर विदेश नीति के मुद्दे पर फैसला करते वक्‍त भी स्‍थानीय मुद्दों को तरजीह दी जाएगी, तो केंद्र सरकार को मिला मजबूत जनादेश कोई मायने नहीं रखता, ऐसे में संसद में यह संशोधन पास बड़ी कामयाबी है.

साभार newsflicks.com

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