61 साल में चार बार फौजी हुकूमत. ये पाकिस्तान का सबसे खतरनाक सच है. फौजी बूतों के ठोकरों से यहां लोकतंत्र को लहूलुहान होते लोगों ने देखा है और एक बार उसकी आहट धीरे धीरे सुनायी पड़ रही है.
1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बन तो गया लेकिन ग्यारह साल बाद ही जनरल मुहम्मद अयूब खान ने सत्ता हथिया ली और दो साल बाद 1960 में खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति ऐलान कर दिया.
पाकिस्तान पर अयूब खान का राज चला पूरे नौ साल तक चला. इस दौरान भारत के हाथों पाकिस्तान की करारी हार से अयूब खान की सत्ता पर पकड़ कमजोर होने लगी और 1969 में जनरल याह्या खान ने उन्हें हुकूमत से बेदखल करके पाकिस्तान की बागडोर अपने हाथों में ले ली, लेकिन उसी याह्या खान के जमाने में पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में जन्म हुआ और भारत के हाथों पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली.
इसके बाद पाकिस्तान में एक बार फिर लोकशाही की बयार चली और जुल्फीकार अली भुट्टो चुनकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन जिस जनरल जियाउल हक को उन्होंने आर्मी चीफ बनाया, उसी जिया उल हक ने 1978 में भुट्टो का तख्तापलट करके खुद ही पाकिस्तान की कमान संभाल ली. साल भर बाद ही भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया.
उसके बाद 1988 में जियाउल हक की विमान दुर्घटना में मौत होने तक पाकिस्तान में फौजी हुकूमत रही. बाद में चुनाव तो कई बार हुए लेकिन पाकिस्तान हमेशा लड़खड़ाता ही रहा.
दुनिया ने एक बार फिर पाकिस्तान में फौजी हुकूमत तब देखी, जब 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बेदखल करके आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली.