क्या भारतीय सेना इतनी कंगाली में है कि वो अपने जवानों के लिए वर्दी भी नहीं खरीद सकती? ऐसी ही बात कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कही गई है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. ज्यादा हैरानी की बात ये है कि राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने इन रिपोर्ट्स को चुभते कटाक्षों के साथ ट्वीट किया.
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में पीएम मोदी को निशाना बनाते हुए लिखा- “मेक (खोखले नारे और निरर्थक विशेषण) इन इंडिया....जबकि जवानों को अपनी वर्दी और जूते खुद खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है.”
MAKE (empty slogans and useless acronyms) IN INDIA....meanwhile, make our soldiers buy their own clothes & shoes. https://t.co/UaWqsIhnQx
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 5, 2018
वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक कदम और आगे जाते हुए सीधे पीएम मोदी का नाम लेते हुए ट्वीट किया-
“मोदी जी शर्म करिए विदेशों में घूमने के लिए आपके पास पैसे हैं लेकिन सेना के जवानों की वर्दी ख़रीदने के लिए आपके पास पैसा नहीं है.”
सेना के इस फैसले के बाद सैनिकों को अब खुद खरीदनी पड़ेगी वर्दी https://t.co/GU5HO9P7Eq
मोदी जी शर्म करिए विदेशों में घूमने के लिए आपके पास पैसे हैं लेकिन सेना के जवानों की बर्दी ख़रीदने के लिए आपके पास पैसा नहीं है।
— digvijaya singh (@digvijaya_28) June 5, 2018
कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा. “फंड के अभाव ने जवानों को अपनी वर्दी खुद खरीदने के लिए मजबूर किया. कहां हैं मोदी जी? ये भारत के इतिहास की पहली सरकार है जो सेना के नाम पर पूरी राजनीति करती है लेकिन उन्हें देती कुछ नहीं. शर्मनाक.”
Paucity of funds force soldiers to buy uniforms on their own.
Kahaan hai Maun Modiji? This is the first government in India's history that does politics full on army, delivers nil to them. Shame. https://t.co/w4ZIuFrwgf
— Priyanka Chaturvedi (@priyankac19) June 5, 2018
लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक भारतीय सेना की स्थिति क्या वाकई इतनी चिंताजनक है? इंडिया टुडे ने वर्दी की खरीद के लिए फंड की कमी वाली रिपोर्ट्स को लेकर तथ्यों की पड़ताल का फैसला किया.
वित्त मंत्रालय के 2 अगस्त, 2017 के मेमोरेंडम से ये पता चलता है कि वर्दी की आपूर्ति को लेकर पिछले साल बदले गए थे जिससे कि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल में लाया जा सके. इन सिफारिशों के मुताबिक, वर्दी और ड्रेस से संबंधित विभिन्न तरह के भत्ते मुहैया कराने के सिस्टम को सालाना दिए जाने वाले एक समाहित ‘ड्रेस अलाउंस’ से बदला जाएगा.
आदेश (प्वाइंट नंबर 3) साफ तौर पर कहता है कि स्टाफ की वो कैटेगरी जिन्हें पहले वर्दी मुहैया कराई जाती थी, उन्हें अब वर्दी नहीं दी जाएगी. ये आदेश 1 जुलाई, 2017 से प्रभाव में आया. मेमोरेंडम के मुताबिक सेना/IAF/Navy/CAPFs/CPOs RPF/RPSS/IPS/कोस्ट गार्ड को 20,000 रुपए सालाना और ऑफिसर्स रैंक से नीचे वाले सैन्यकर्मियों को 10,000 रुपए सालाना ड्रेस अलाउंस मिलेगा. ये ड्रेस अलाउंस हर साल जुलाई के वेतन में जुड़ कर मिलेगा. जब भी महंगाई भत्ता 50 फीसदी बढ़ेगा, ड्रेस अलाउंस 25 फीसदी बढ़ाया जाएगा.
ये अलाउंस सिर्फ बुनियादी वर्दी से संबंधित है. सियाचिन ग्लेशियर या पनडुब्बियों के अंदर जो विशेष कपड़ों की जरूरत होती है उन्हें मौजूदा मानकों की तरह पहले के जैसे ही सैन्यकर्मियों को उपलब्ध कराया जाता रहेगा. मेमोरेंडम की प्रति वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है यहां
राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह ने जिन मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला दिया उनमें फंड की कमी को चिह्नित करने के साथ वर्दी के भावनात्मक मुद्दे के अलावा एक और बात का उल्लेख किया गया.
रिपोर्ट्स में ये आभास देने की कोशिश की गई कि “फंड की कमी की वजह से सेना ने सरकारी ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों से आपूर्ति में कटौती का फैसला किया है. ये कदम इसलिए उठाया गया है कि इस पर खर्च किए जाने वाले पैसे को छोटे गहन युद्ध के लिए जरूरी अहम गोलाबारूद और अन्य साजोसामान की आपूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जा सके.”
ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों से आपूर्ति में कटौती का ये उद्धहरण भी भ्रामक है. ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों से आपूर्ति में कटौती का फैसला बीते साल अप्रैल में लिया गया था.
रक्षा उत्पादन विभाग ने 27 अप्रैल 2017 की चिट्ठी में इसके पीछे वास्तविक कारणों को बताया गया. चिट्ठी में साफ तौर पर कहा गया है कि दो कमेटियों की सिफारिशों पर ये फैसला किया गया कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों से Non-Core वस्तुओं की उत्पादन सुविधाओं को या तो बंद कर दिया जाए या पीपीपी मॉडल पर दे दिया जाए. इन कमेटियों को ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए सुझाव देने को गठित किया गया था.
चिट्ठी में कहा गया है कि अब से सेना के लिए ये अनिवार्य नहीं रह जाएगा कि वो 143 Non-Core वस्तुओं की खरीद ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों से ही करे. इनके लिए खुले टेंडर भी जारी किए जा सकते हैं जिनमें ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) भी हिस्सा ले सकता है.
जब फंड की कथित कमी को लेकर सवाल किया गया तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को जोर देकर इसे खारिज किया.
"In 2015-16, capital outlay was Rs.94588 crore & expenditure was Rs 79958.31 crore. In 2016-17,capital outlay for defence was Rs.86340.00 crore and expenditure was Rs. 86370.92 crore."
- Smt @nsitharaman on Defence Expenditure@PIB_India @MIB_India @SpokespersonMoD
— Raksha Mantri (@DefenceMinIndia) June 5, 2018
रक्षा मंत्री ट्विटर हैंडल से निर्मला सीतारमण के हवाले से कहा गया- “2004-05 से बाद 2017-18 में रक्षा व्यय सर्वाधिक था. इसी तरह ये 2016-17 में दूसरा सर्वाधिक और 2015-16 में तीसरा सर्वाधिक था. 2014-15 में ये 2004-05 के बाद ये चौथा सर्वाधिक था.”
ये साफ है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के खर्च में कटौती का सबंध फंड की कटौती से नहीं है. नीतिगत फैसले उन अनेक शिकायतों के आधार पर लिए गए जो ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों की ओर से निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर की गईं.
ना सिर्फ सरकार को संसद में इन उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर सवालों का सामना करना पड़ा बल्कि CAG ने भी ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के गुणवत्ता नियंत्रण को सुनिश्चित नहीं करने के लिए सरकार को घेरा. ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के कामकाज का आकलन करने के बाद रक्षा मंत्रालय ने सख्त कदम उठाते हुए अगस्त 2017 में 13 वरिष्ठ ऑर्डिनेंस फैक्ट्री अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया.
यद्यपि ‘डिफेंस के लिए फंड का अभाव’ बड़े क्षेत्र को कवर करता है और ये विस्तृत बहस की मांग करता है लेकिन राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह ने कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर जवानों की वर्दी के संबंध में जो निष्कर्ष निकाले, उन्हें सही नहीं कहा जा सकता.