आखिरकार लंबे इंतजार के बाद एम-777 हॉवित्ज़र तोपें भारतीय सेना को मिल चुकी हैं और उनका परीक्षण पोखरण रेंज में होगा. इस तरह साल 1986 में बोफोर्स तोप के बाद
अब सेना को एक कारगर तोप मिलने का रास्ता साफ हो गया है. इनकी चीन सीमा पर तैनाती होगी.
सेना का तीस साल पुराना इंतज़ार ख़त्म जल्द ही ख़त्म होने जा रहा है. अमेरिका से 145 एम-777 हॉवित्ज़र तोप खरीदने के सौदे के तहत परीक्षण के तहत
पहली दो तोपें भारत पहुंच चुकी हैं.
40 किमी दूर टारगेट पर निशाना
1986 में बोफोर्स के बाद पहली बार सेना के लिये बढ़िया तोप खरीदने का रास्ता साफ हो गया है. 2900 करोड़ की इस डील के तहत अमेरिका भारत को 145 नई
तोपें देगा. ऑप्टिकल फायर कंट्रोल वाली हॉवित्ज़र से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित टारगेट पर सटीक निशाना साधा जा सकता है. डिजिटल फायर कंट्रोल
वाली यह तोप एक मिनट में 5 राउंड फायर करती है.
पहाड़ी क्षेत्रों के लिए कारगर
155 एमएम की हल्की हॉवित्ज़र सेना के लिए बेहद अहम होगी, क्योंकि इसको जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से ले जाया जा
सकता है. सेना में माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन के बाद इस तोप की ज़रुरत और ज़्यादा महसूस की जा रही थी. इससे पहले कई सालों से लगातार होवित्जर की
क़ीमत पर बात अटकी हुई थी.
अरुणाचल में चीन से सटी सीमा पर सेना को इस तोप की ख़ास दरकार थी. हॉवित्ज़र 155 एमएम की अकेली ऐसी तोप है जिसका वज़न 4200 किलो से कम है. देश में ही 155 एमएम की तोप बनाने की ऑर्डनेन्स फैक्ट्री बोर्ड की कोशिशें उतनी कामयाब नहीं रही हैं. ट्रायल के दौरान गन बैरल फटने की घटनाएं भी सामने आईं थी. ज़ाहिर है हॉवित्ज़र का आना सेना में आर्टिलिरी के लिये मील का पत्थर साबित होगा.
एम 777 हॉवित्जर तोप भी खूब चर्चा में है. इस तोप का इस्तेमाल इस्तेमाल अमेरिका अफगानिस्तान में कर रहा है. अमेरिका भारत को 145 अल्ट्रा लाइट हॉवित्ज़र तोपें बेचने के लिए तैयार हो गया है. यह डील 700 मिलियन डॉलर से ज्यादा की होगी और ज्यादातर तोपें भारत में तैयार होंगी.
#WATCH: M-777 ultra-light Howitzer guns inducted by Indian Army pic.twitter.com/KcSACPS7gx
— ANI (@ANI_news) May 18, 2017
हॉवित्ज़र में क्या है खास?
एम 777 तोपें, दूसरी तोपों के मुकाबले काफी हल्की हैं. इनको बनाने में काफी हद तक टाइटेनियम का इस्तेमाल किया गया है. यह 25 किलोमीटर दूर तक
बिल्कुल सटीक तरीके से टारगेट हिट कर सकती हैं. चीन से निपटने में तो ये तोपें काफी कारगर साबित हो सकती हैं. भारत ये तोपें अपनी 17 माउंटेन कॉर्प्स में
तैनात कर सकता है.
गौरतलब है कि 1980 के बाद से इंडियन आर्मी की आर्टिलरी में कोई नई तोप शामिल नहीं की गई. बोफोर्स डील में हुए विवाद के बाद ये हालात बने. भारत बोफोर्स का अपग्रेडेड वर्जन धनुष नाम से भारत में तैयार कर रहा है. इसकी फाइनल ट्रायल चल रही है. 1260 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में 114 तोपों का ट्रायल चल रहा है. जरूरत 414 तोपों की है.
इसके अलावा 500 करोड़ रुपए के सेल्फ प्रोपेल्ड गन का कॉन्ट्रैक्ट तैयार है. इसे एलएंडटी और सैमसंग टैकविन बनाएगी. जून 2006 में हॉवित्ज़र का लाइट वर्जन खरीदने के लिए भारत-अमेरिका की बातचीत शुरू हुई थी. भारत इन्हें चीन बॉर्डर पर तैनात करना चाहता है. अगस्त 2013 में अमेरिका ने हॉवित्ज़र का नया वर्जन देने की पेशकश की. कीमत थी 885 मिलियन डॉलर.
दूसरी तरफ भारत-52 तोप के ऑपरेशनल पैरामीटर की बात की जाए तो यह खुद से 25 किलोमीटर प्रति घंटा मूव कर सकती है. यह 52 कैलिबर राउंड्स लेगी, जबकि बोफोर्स की क्षमता 39 कैलिबर की है. भारतीय सेना सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत तक भारत फोर्ज के आर्टिलरी उपकरणों का का परीक्षण शुरू कर देगी.
अल्ट्रा लाइट गन टेस्टिंग के लिए सितंबर के अंत में तैयार होगी, जबकि 155 एमएम आर्टिलरी गन का ट्रायल दिसंबर तक शुरू होगा. 155 एमएम अल्ट्रा लाइट गन टेस्टिंग के लिए अगले साल तक तैयार हो जाएगी.