आईआईटी दिल्ली के निदेशक के इस्तीफे के कारण शुरू हुए विवाद के बीच सरकार ने सोमवार को सफाई दी. सरकार की ओर से कहा गया कि उसने इस अधिकारी के कार्यकाल के दौरान मारिशस में एक परिसर स्थापित करने के मकसद से किए गए सहमति पत्र के कानूनी पहलुओं पर गौर करने के लिए एक समिति गठित की है. हालांकि आईआईटी की ओर से कहा गया कि इस करार को सरकार की मंजूरी प्राप्त थी.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि आर. शेवगांवकर पर आईआईटी दिल्ली के निदेशक पद से इस्तीफा देने के लिए कोई दबाव नहीं था और उनके त्यागपत्र को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है.
अधिकारियों ने कहा कि करीब डेढ़ माह पहले एक सदस्यीय समिति गठित की गई थी, जो मारिशस के साथ हुए सहमति करार के कानूनी पहलुओं को देखेगी. यह समिति तब गठित की गई जब मंत्रालय को यह पता चला कि सहमति करार आईआईटी कानून का उल्लंघन करता है.
इस बीच, दिल्ली आईआईटी ने सोमवार शाम एक बयान जारी कर कहा कि निदेशक ने व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा दिया था और इसका किसी अन्य मामले से लेनादेना नहीं है जैसा कि प्रेस में खबर आ रही है.
मीडिया के एक वर्ग में आयी खबरों के अनुसार शेवगांवकर पर यह दबाव था कि वह आईआईटी परिसर में क्रिकेट अकादमी के एक प्रस्ताव को स्वीकार करें और पूर्व आईआईटी प्राध्यापक व अब बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी के 70 लाख रुपये के बकाये को दिलवाएं.
आईआईटी रजिस्ट्रार द्वारा जारी बयान के अनुसार मारिशस का परिसर आईआईटी दिल्ली का विस्तार परिसर नहीं होगा, बल्कि एक स्वतंत्र अनुसंधान अकादमी होगा जिसका नाम अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान अकादमी संस्थान होगा. इसमें आईआईटी दिल्ली की भूमिका केवल परामर्शक की होगी. बयान में कहा गया कि 21 जनवरी 2011 को आईआईटी परिषद की सिफारिश पर अंतरराष्ट्रीय दिल्ली अनुसंधान अकादमी संस्थान शुरू करने का प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाह पर इसका नाम बदल कर आईआईटीआरए कर दिया गया.
इसमें कहा गया कि अंतिम सहमति पत्र को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मंजूरी दी थी और मारिशस में 19 नवंबर 2013 को मानव संसाधन विकास मंत्री की उपस्थिति में इस पर हस्ताक्षर किए गए थे.
- इनपुट भाषा से