पाकिस्तान अपने अंदरूनी मसलों को लेकर उलझा हुआ है तो हुर्रियत कॉन्फ्रेंस अब कश्मीर मुद्दे को लेकर एक बार फिर चीन की तरफ आस लगाए देख रही है. हुर्रियत चाहती है कि चीन भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के मुद्दे पर बिचौलिये की भूमिका निभाए. हालांकि हुर्रियत के नेता तो यहां तक कहते हैं कि वे चीन की तरफ नहीं, बल्कि चीन खुद कश्मीर मसले पर बारीकी से नजर रखे हुए है. कश्मीर मसले को सुलझाने में उसकी भी काफी दिलचस्पी है. इस बात को इस तरीके से देखा जा सकता है कि दोनों (हुर्रियत और चीन) ही इस मसले पर एक दूसरे की तरफ से पहल किए जाने का इंतजार कर रहे हों.
हुर्रियत के नेता प्रो. अब्दुल गनी भट ने इस बाबत कहा कि चीन भी इस मुद्दे पर नजर रखे हुए है. उन्होंने 'मेल टुडे' से खास बातचीत में कहा, 'चीन एक बढ़ती हुई शक्ति है. दक्षिण एशिया में चीन की रणनीतिक दिलचस्पी रहती है. इसलिए, यह तो सामान्य सी बात होगी कि वो कश्मीर मसले का हल ढूंढने की कोशिश करे.' उन्होंने कहा, 'चीन खुलकर कभी अपनी बात नहीं कहता है, लेकिन हम समझते हैं कि इस मामले में उसकी भी दिलचस्पी है. चीन यदि आने वाले समय में भारत और पाकिस्तान के बीच इस मसले को सुलझाने में अहम भूमिका निभाए तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.'
इससे पहले 2009 में हुर्रियत के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपने नेता मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में क्षेत्र में शांति स्थापना के लिए बीजिंग की अहम भूमिका हो सकने की बात छेड़ी थी. तब मीरवाइज ने खुद कहा था कि चीन के पास साउथ एशिया और कश्मीर में शांति कायम कर सकने का रुतबा है.
भट को जब याद दिलाया गया कि चीन बार-बार लद्दाख में अतिक्रमण करता है और भारतीय सीमा में घुसता है तो उन्होंने कहा, 'चीन कोई युद्ध करने नहीं जा रहा है. यह बहुत दूर की बात है. हां, चीन भारत को इस तरह से बेचैन कर सकता है.'
अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता इससे पहले भी कई बार अपनी तरफ से इस मसले को उठा चुके हैं. पार्टी चाहती है कश्मीर को पूरी तरह आजाद कर दिया जाए.