इन दिनों समलैंगिकता को लेकर देशभर में बड़ी बहस छिड़ी हुई है. कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को जायज ठहरा रहे हैं, जिसमें उसने समलैंगिकता को अपराध करार दिया. दूसरी ओर, कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ भी लोगों की तादाद कुछ कम नहीं है. जानिए समलैंगिकता के मुद्दे पर विख्यात लेखक विक्रम सेठ के विचार, जो उन्होंने खास इंडिया टुडे मैगजीन के लिए लिखे..
इंसान के तौर पर हम एक-दूसरे के साथ जो क्रूरता बरतते हैं,
उनमें सबसे ज़्यादा क्रूर यह कहना हैः
‘‘तुम जिसे पसंद करते हो, उससे प्रेम नहीं करोगे या यौन संबंध नहीं रख सकोगे, यह इसलिए नहीं कि तुम दोनों बालिग नहीं हो या एक तरफ की रज़ामंदी नहीं है, बल्कि इसलिए कि तुम दोनों अलग धर्म के हो, अलग जाति के हो, एक ही गांव के हो, एक ही जेंडर के हो.
तुम कह सकते हो कि तुम एक-दूसरे से प्यार करते हो, कि तुम्हें एक-दूसरे से सुकून , साहस और ख़ुशी मिलती है लेकिन तुम्हारे प्यार से मुझे नफ़रत है. यह परंपरा के विरुद्ध है, क़ानून के ख़िलाफ़ है, प्रकृति के नियम के अनुरूप नहीं है, इससे हमारे परिवार की इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी, हमारी नस्ल ख़राब हो जाएगी, इससे कलियुग आ जाएगा, यह हमारे समाज में सड़ांध पैदा कर देगा, यह ईश्वर की नज़र में घृणित है. यह वर्जित है.
तुम कह सकते हो कि तुम एक-दूसरे से प्यार करते हो लेकिन मुझे इसकी परवाह नहीं. मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकता और तुम दोनों को सुख-चैन से जीने नहीं दे सकता. मुझे कुछ करना ही पड़ेगा, और मैं ज़रूर करूंगा. नहीं, तुमने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा, तुम्हारा बिगाड़ूंगा ज़रूर. मैं तुम्हें निकाल दूंगा, मैं तुम्हें कमीना समझूंगा, तुम्हें जाति बाहर कर दूंगा या अपराधी घोषित करवा दूंगा. मैं तुम्हें बंद करवा दूंगा, तुम्हारे पैर तोड़ दूंगा, तुम्हारे चेहरे पर एसिड फेंक दूंगा, तुम्हें क्रेन से लटका दूंगा, तुम्हें संगसार कर दूंगा.
अगर बलवाइयों का झुंड मेरा साथ देता है तो बेहतर, अगर क़ानून की सहायता मिलती है तो बेहतर, अगर राष्ट्रवादी नारे का सहारा मिलता हो तो बेहतर, अगर धर्म के चोले से मदद मिलती हो तो बेहतर, लेकिन किसी न किसी तरह मैं तुम दोनों को अलग करके ही रहूंगा. मेरे लिए यही करना सही और मुनासिब है.
मैं यह करूंगा क्योंकि मेरी जाति या बिरादरी यही कहती है, मेरी पंचायत यही कहती है, फलाँ शास्त्र यही कहता है, इस क़ानून की यह धारा यही कहती है, सभ्यता ख़ुद यही कहती है, स्वयं ईश्वर यही कहता है.
कोई दलील काम नहीं आएगी. इंसानियत मुझे रिझा नहीं पाएगी. भारतीय इतिहास को मैं नहीं जानता. आधुनिक विज्ञान को मैं नहीं मानता.
सीधी-सी बात है, मेरा यह जाप हैः
मेरा प्यार पुण्य है, तेरा प्यार पाप है.’’
(विक्रम सेठ का यह लेख और आर्टिकल 377 पर कई दूसरे लेख और रपट आप इंडिया टुडे के 1 जनवरी 2014 के अंक में प्रकाशित हुआ था.)