राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के सांसद अभिजीत मुखर्जी ने एक ऐसा बयान दिया जो उनकी पार्टी के लिए तो छोड़िए खुद उनके गले की हड्डी बन गया. गैंग रेप के खिलाफ पूरा देश उबल रहा है और अभिजीत दा कह बैठे की ये तो फैशनेबल रंगी पुती महिलाओं का प्रदर्शन है. इसका विरोध होना ही था. बहन ने माफी मांगी तो होश ठिकाने आए और कहा कि अपने कहे को वापस लेता हूं और सभी से माफी मांगता हूं.
क्या महामहिम के सांसद पुत्र ये बताएंगे कि अगर प्रदर्शनकारियों में छात्र-छात्राएं कम भी थे तो क्या इससे इस जनसैलाब के विरोध की वैधता कम हो जाती है. रंगी-पुती महिलाओं से उनका मतलब क्या है. क्या मोमबत्ती जलाकर शांतिपूर्ण विरोध फैशन का हिस्सा होता है. क्या टीवी पर नज़र आने से प्रदर्शनकारी मशहूर हो जाते हैं और क्या डिस्को जाने वाली महिलाएं जुल्म के खिलाफ सड़कों पर नहीं उतर सकतीं?
बहन ने जब अपने सांसद भाई को टीवी पर बोलते सुना तो पानी-पानी हो गई. राखी के बंधन ने राजनीति का धागा तोड़ दिया. ये तो अभिजीत ही बता सकते हैं कि ज़ुबान फिसल गई या दिल की बात जुबां पर आ गई लेकिन हिंदुस्तान ने उन्हें बोलते सुना तो ग़ुस्सा नहीं आया दिल बैठ गया.
हाहाकार मचा तो अभिजीत को लगा भूल हो गई. पहले कहा संदर्भ को समझने में गलती की है मीडिया ने और फिर लगा कि सफाई के चक्कर में समझदारी पर और ज़्यादा बट्टा लगता जा रहा है तो बात वापस ले ली.
सवाल एक बयान का नहीं है. उस सोच का है जिसपर समाज बनता है. उस संवेदनशीलता का है जो घटनाओं को इतिहास के साथ जोड़कर देखता है और उस सिसासत का भी जो एक देश को प्रायश्चित से आगे ले जाता है. समय पूछ रहा है कि क्या हम इसे स्वीकार भी नहीं करेंगे.