हमरे गांव में एक चौधरी हुआ करते थे. चौधरी कृपाशंकर. बड़े दयालु, कृपानिधान. प्रेम और सद्भावना के जीते जागते नमूने. बहुत कम लोगों को ये राज़ मालूम था कि उनकी महानता उनके बेटों की बदौलत थी, जो अकल्पनीय क्रूरता को मूर्त रूप देते थे. सारी ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा था और पूरे गांव का पेट उनकी कृपा पर ही चलता था. बेटे वसूली करते और यूं करते कि लोगों को कई-कई दिन भूखे रहना पड़ता. ऊपर से मार पड़ती सो अलग.
बेटों के हाथ लहूलुहान होकर लोग चौधरी के ड्योढ़ी को दौड़ते. उनके पैरों पर गिर जाते. चौधरी अपने बेटों को बुलाते और सरे आम फटकारते. कहते कि मानवता मर गई है तुम्हारी, तुम भी डूब मरो. देखो कैसे मारा है बेचारे को. अरे कोई इसे पानी पिलाओ. फिर बुरी तरह कुटे गांव वाले को कहते जाओ तुम्हारा आधा माफ़. बूढ़ा बेचारा चौधरी के कदम चूमने लगता और जिंदाबाद के नारे लगता. चौधरी के बेटे कुढ़ते, कुनमुनाते भीतर जाते. और उनका शिकार दर्द के बावजूद मुस्कुराता घर लौटता. हालांकि आधा माफ़ का मतलब बस इतना होता कि भूखे सोने वाली रातों की संख्या ही आधी होती. जब तक ज़ख्म ना हो तो मरहम पट्टी कैसे करें. पर ज़ख्म कोई और दे, इसका तो इंतजाम हो ही सकता है. बेटे देते, बाप सहानुभूति देता. चौधरी की चौधराहट और दरियादिली की कहानी भी चलती रहती. चौधरी साहब का नुस्खा सियासत में बड़े काम का है.
बाल ठाकरे इसे बखूबी काम में लेते थे. शिव सेना की कुर्सी नहीं ली, बस कमान रखा. सरकार कोई अलोकप्रिय कदम उठाती और जनता में विरोध की सुगबुगाहट होती तो वह सामना में अपनी सरकार को सम्पादकीय के कोड़े लगाते. लोग मानते शिव सेना सरकार भले कुछ गलत कर दे, शिव सेना और बालासाहेब ऐसा नहीं करेंगे. मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसा ही करते हैं. अक्सर प्रेस में सरकार की निंदा कर देते हैं. अपने पुत्र को गद्दी दी है और यह भी कहते हैं कि अगर मैं मुख्यमंत्री होता तो ऐसा नहीं करता. ताकि जनता समझे अखिलेश कमज़ोर हो सकते हैं, समाजवादी पार्टी या नेताजी नहीं.
राहुल ने चौधरी का नुस्खा पहले भी कई बार आजमाने की कोशिश की है, पर जुम्मे को जो चुम्मा इस्तेमाल किया उसने तो कमाल ही कर दिया. उन्हीं की सरकार बिल लाई थी, उनको सब पता था. बीजेपी वाले भी थोड़े आनाकानी कर चुप रहने वाले थे ये भी पता था. सरकार ने अध्यादेश पास कर राष्ट्रपति को भेज दिया. बीजेपी वाले पलट गए और विरोध पर उतारू हो गए. देश भर में बहस छिड़ गई, थूथू की नौबत आ गई. प्रधानमंत्री जी न्यूयॉर्क में हैं और कांग्रेसी नेता जहां तहां अध्यादेश के समर्थन में बके जा रहे थे. इसी क्रम में अजय माकन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी, तभी राहुल वहां आ धमके. जिस अध्यादेश के बचाव में प्रेस कॉन्फ्रेंस था, उसे बकवास करार दे दिया और कहा फाड़ कर फ़ेंक देना चाहिए ऐसे वाहियात अध्यादेश को कचरे के डब्बे में.
माकन का तो काटो तो खून नहीं. कांग्रेस के प्रवक्ताओं का भी गला सूख गया. देश भी सन्न. पार्टी के युवराज ने ये क्या किया. अपनी सरकार को चमेट रसीद दी, वह भी पार्टी के प्रेस कांफ्रेंस में. मनमोहन सिंह तो न्यूयॉर्क में ही धरती को कह रहे हैं, कि थोड़ी देर घूमना बंद करो माता, मैं उतर लूं. मुझे आगे नहीं जाना. तुम्हारे चक्कर में, और दिल्ली के घनचक्कर में मुझे चक्कर आने लगे हैं. फटा आर्डिनेंस और निकला हीरो. और मैं विलेन अपना मुंह क्या दिखाऊंगा ओबामा को. शरीफ तो चुटकियां लेगा. क्या हो गया है राहुल बाबा को?
भैया, ये चौधरी साब का कदीम नुस्खा है. ज़ख्म कोई और दे और मरहम हम. तभी तो चौधरी हैं. और चौधराहट है. उस पर चुनाव की आहट है.