जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इससे घाटी के युवाओं की पीढ़ियों में फिर से अलगाव और अन्याय की भावना पैदा होगी.
उमर ने कहा कि यह ‘दुखद’ है कि फांसी से पहले गुरु को अपने परिवार से मिलने नहीं दिया गया और अंतिम विदाई की भी अनुमति नहीं दी गयी.
संसद पर हमला मामले में अभियुक्त अफजल गुरु शनिवार को गोपनीय प्रक्रिया में फांसी दे दी गयी और तिहाड़ जेल परिसर में ही दफनाया दिया गया. अफजल की फांसी से नाराज दिख रहे उमर ने कहा कि कई सवाल थे जिनका जवाब दिए जाने की जरूरत थी.
उमर ने कहा कि अफजल की फांसी का दीर्घावधिक निहितार्थ ‘काफी चिंताजनक’ है क्योंकि वे कश्मीर में युवाओं की नयी पीढ़ी से संबंधित हैं जो मकबूल भट्ट मामले से नहीं परिचित हों लेकिन वे अफजल से परिचित होंगे. भट्ट को भारतीय राजनयिक रवींद्र महात्रे की ब्रिटेन में हत्या मामले में 1984 में फांसी दी गयी थी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि कृपया यह समझिए कि कश्मीरियों की एक से अधिक पीढ़ी है जो अपने को पीड़ित के रूप में देखती है, जो अपने को उस श्रेणी के लोगों में देखते हैं जिन्हें न्याय नहीं मिलेगा.
उमर ने कहा कि आप इसे पसंद करें या नहीं, अफजल की फांसी से यह बिन्दु मजबूत हुआ है कि उनके (नई पीढ़ी के) लिए न्याय नहीं है और यह मेरी समझ से सुरक्षा जैसे तात्कालिक निहितार्थ की अपेक्षा अधिक चिंताजनक और परेशान करने वाला है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि हम किस प्रकार अन्याय और अलगाव की उनकी धारणा दूर कर सकेंगे. उमर ने खुद को मृत्युदंड के खिलाफ बताते हुए कहा कि जब तक कानून में मौत की सजा का प्रावधान बना रहता है, चुनिंदा आधार पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.
यह पूछे जाने पर कि क्या संप्रग सरकार ने अफजल को फांसी देकर चुनिंदा आधार पर कार्रवाई की, उमर ने कहा कि यह कश्मीरियों और दुनिया के सामने साबित करना होगा कि अफजल की फांसी चुनिंदा आधार पर की गयी कार्रवाई नहीं थी.
उन्होंने कहा कि मुझे लग रहा था कि आज नहीं तो कल अफजल को फांसी दी जाएगी. कश्मीरियों की पीढ़ियां अफजल से परिचित होंगी. आपको दुनिया के सामने साबित करना होगा कि मौत की सजा का इस्तेमाल चुनिंदा आधार पर नहीं की गयी है. यह जिम्मेदारी न्यायपालिका और राजनीतिक नेतृत्व पर है कि यह फांसी चुनिंदा आधार पर नहीं थी.
मुख्यमंत्री ने इस बात पर सहमति जतायी कि कई लोगों का मानना है कि अफजल की सुनवाई त्रुटिपूर्ण थी. उन्होंने कहा कि देश के शेष हिस्से में भी कई ऐसे स्वर हैं जो ऐसी ही राय रखते हैं.
उमर ने कहा कि अगर केंद्र अपने को इस आरोप से बचाना चाहता है कि अफजल की फांसी कानूनी के बदले राजनीतिक थी तो उसे अन्य ऐसे अभियुक्तों के बारे में सवालों का जवाब देना होगा जिन्हें मौत की सजा सुनायी गयी है. उन्होंने कहा कि कई अन्य को भी मौत की सजा सुनायी गयी है जो लोकतंत्र पर हमला में शामिल रहे हैं.
उन्होंने सवाल किया कि क्या किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री लोकतंत्र के प्रतीक नहीं हैं? क्या कोई पूर्व प्रधानमंत्री लोकतंत्र के प्रतीक नहीं हैं? निश्चित तौर पर, वे हैं. वह परोक्ष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारों से जुड़े मामलों का जिक्र कर रहे थे. उमर ने कहा कि कई सवालों का जवाब दिए जाने की आवश्यकता है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले में इस्तेमाल किए गए शब्दों को समझना कठिन है. फैसले में सामूहिक विवेक को संतुष्ट किए जाने की बात की है. आप सामूहिक विवेक को संतुष्ट करने के लिए किसी को फांसी नहीं दे सकते. बल्कि इसके लिए कानूनी जरूरतों को पूरा करना होगा. फांसी के पहले परिवार से नहीं मिलने देने के बारे में उमर ने कहा कि मानवीय आधार पर यह इस फांसी का दुखद पक्ष है.
मुख्यमंत्री ने डाक के जरिए अफजल के परिवार को सूचित किए जाने के औचित्य पर सवाल किया और कहा कि इस माध्यम की विश्वसनीयता ही सवालों के घेरे में है. उन्होंने कहा कि अगर हम किसी को डाक से यह सूचना दे रहे हैं कि उसके परिवार के सदस्य को फांसी की सजा दी जा रही है तो निश्चित रूप से व्यवस्था में कुछ गंभीर गड़बड़ी है.
उमर ने कहा कि कई अन्य लोग हैं जिन्हें पहले ही मौत की सजा सुनायी गयी है. अब मैं समझता हूं कि आपने संसद पर हमला मामले में गुरू को फांसी दे दी है और आप कहते हैं कि संसद लोकतंत्र का प्रतीक है. समझ गया और अब कोई बहस नहीं.
उन्होंने इस बात पर चिंता जतायी कि उनकी सरकार को सिर्फ 12 घंटे पहले फांसी के बारे में बताया गया. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि अफजल के परिवार को सही समय पर सूचना नहीं दी गयी.