scorecardresearch
 

एम्स के कॉनवोकेशन में बोले PM नरेंद्र मोदी, 'आप गरीबों के पैसे से बने हैं डॉक्टर, याद रखें'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एम्स के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया. इस दौरान प्रधानमंत्री हल्के मूड में नजर आए. उन्होंने सुझाव दिया कि गरीब तबकों के बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों में विशेष मेहमान के रूप में बुलाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिले.

Advertisement
X
PM Narendra Modi
PM Narendra Modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को एम्स के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया. इस दौरान प्रधानमंत्री हल्के मूड में नजर आए. उन्होंने सुझाव दिया कि गरीब तबकों के बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों में विशेष मेहमान के रूप में बुलाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिले. इसके अलावा क्या बोले प्रधानमंत्री, पढ़िए उन्हीं के शब्दों में:

Advertisement

प्रधानमंत्री मोदी का एम्स में संबोधन
मैं कभी अच्छा स्टूडेंट नहीं रहा. न ही कभी अवॉर्ड नहीं मिला. इसलिए ज्यादा बारीकियां नहीं पता हैं. छात्र जब एग्जाम देता है, तो खाना भी नहीं जमता. बड़े तनाव में रहता है. मगर आज तो आप उन सबसे पार आ पहुंचे हैं, तो फिर आप इतने गंभीर क्यों हैं?
(तालियां)

मैं कब से देख रहा था. क्या कारण है. क्या मिश्रा जी, क्या कारण है?

मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप अपने दायित्व के प्रति इससे भी ज्यादा गंभीर हों. लेकिन जीवन को गंभीर मत बना देना.
(तालियां)

जीवन मुश्किल है. संकटों से गुजरते हुए आगे बढ़ने की आदत बनाते चलना. इसका आनंद ही अलग है. अगर हम शास्त्रों की तरफ देखें. तो तैत्तरेय उपनिषद में वेदकाल में गुरु शिष्य परंपरा थी और शिष्य जब विद्यार्थी काल समाप्त कर जाता था तो कैसे कनवोकेशन जाता था, इसका उसमें जिक्र है. वह परंपरा नए रंग रूप के साथ अब भी चल रही है.

Advertisement

मेरा एक दो सुझाव जरूर है.क्या कभी हम इस कनवोकेशन में एक स्पेशल गेस्ट की परंपरा शुरू कर सकते हैं. गरीब बस्ती में जो स्कूल हैं. ऐसे एक सेलेक्टेड 8वीं 9वीं कक्षा के 30-40 बच्चे, उनको यहां बुलाया जाए, बैठाया जाए. और वो देखें कि ये दुनिया क्या है. जो काम शायद उसका टीचर नहीं कर पाएगा. उस बालक के मन में घंटे डेढ़ घंटे का ये अवसर एक जिज्ञासा पैदा करेगा. मन में सपने जगाएगा. उसे लगेगा कि कभी मेरी जिंदगी में ये अवसर आए. कल्पना करिए कितना बड़ा असर हो सकता है इसका. चीज बहुत छोटी है. लेकिन ताकत बहुत गहरी है. और यही चीजें हैं जो बदलाव लाती हैं.

और मेरा आग्रह है कि वो गरीब बच्चे. डॉक्टर का बच्चा आएगा तो कहेगा कि मेरे पिताजी ने भी किया है. समाज जीवन में अपनी सामान्य बातों से कैसे बदलाव ला सकते हैं. उस पर हम सोचें.

जो डॉक्टर बनकर आज जा रहे हैं. आपने उपलब्धि हासिल की है. आज आ जा रहे हैं. बीते कल और आने वाले कल में कितना अंतर है. आपने जब पहली बार एम्स में कदम रखा होगा. घर में मां-पिता चाचा ने बहुत सूचनाएं दी होंगी. ऐसा करना, ऐसा मत करना. ट्रेन में बैठे होंगे तो खिड़की के बाहर मत देखना. एक प्रकार से आज भी वही पल है. कनवोकेशन एक प्रकार से आखिरी कदम रखते समय परामर्श देने का एक पल होता है. कभी आप सोचे हैं. कि जब आप क्लासरूम में थे, इंस्टिट्यूट में थे, पढ़ रहे थे, तब आप कितने प्रोटेक्टेड थे, कोई कठिनाई आई तो सीनियर साथी मिल जाता था, समाधान नहीं हुआ तो प्रोफेसर, वह नहीं मिले तो डीन मिल जाते थे.

Advertisement

आपको अब तक सुरक्षित माहौल में फैसला करने की नौबत आई होगी. लेकिन अब एकलव्य की तरह एकांत साधना करनी होगी. लेकिन अगर आप सोचें कि बंद क्लासरूम से विशाल क्लासरूम में जा रहे हैं. हमेशा स्टूडेंट बने रहें. आप जिन वरिष्ठ जनों को मैंने सम्मानित किया वे लेटेस्ट मेडिकल डिवेलपमेंट से वाकिफ होंगे. इसलिए नहीं कि वे मरीज देखते हैं. इसलिए क्योंकि उनके अंदर का स्टूडेंट जिंदा है.

अगर ये सोच होगी कि इंस्टिट्यूट की पढ़ाई पूरी तो विद्यार्थी जीवन पूरा, तो ये ठहराव लाएगी. जिस पल सीखना बंद, उस पल मृत्यु की तरफ पहला कदम पड़ जाता है. लोग कह रहे थे कि अचरज है मोदी जी की एनर्जी का. बस इतना जोड़ लीजिए कि कुछ नया बेहतर करने की इच्छा आपको थकने नहीं देती. आप अकसर मरीज से कहते हैं कि ये खाना चाहिए, ये नहीं खाना चाहिए. मगर जैसे ही मेस में पहुंचे तो स्पर्धा लगी होगी. देखते हैं आज कौन कितने स्पेशल डिश निपटाता है. यही तो जिंदगी है दोस्तों.

आपने अपनी आत्मा को कभी पूछा. मरीज को तो ये कहा था और मैं ये कर रहा हूं. विद्यार्थी जीवन में तो ठीक है. लेकिन अब नहीं. मैं कैंसर का डॉक्टर हूं और शाम को धुंआधार सिगरेट जलाता हूं तो क्या फर्क पड़ेगा. लोग आपका उदाहरण देंगे कि यार डॉक्टर तो खूब सिगरेट पीता है, इसे पीने से कोई फर्क नहीं पड़ता. एक डॉक्टर का जीवन पेशंट की जिंदगी, उसकी प्रेरणा बन सकता है. सोचकर देखिए. कम लोग हैं, जो जीवन को इस रूप में देखते हैं.

Advertisement

क्या आपके प्रोफेसर अच्छे थे. एम्स की इमारत अच्छी थी, आप थोड़ा मेहनती थे, इसलिए आज ये दिन आया. अगर ऐसे सोचा तो जिंदगी को देखने का दृष्टिकोण हमें पूर्णता की ओर नहीं ले जाएगा.

एग्जाम में रात पढ़ते पढ़ते ठंड लगी होगी. नीचे निकले होंगे. चायवाला बैठा होगा. ठंडी रात में ठिलिया के नीचे चाय वाला सो रहा होगा. आपने उससे कहा होगा, रात भर पढ़ना है. यार चाय पिला दे. उसने बिना मुंह बनाए कहीं से दूध लाकर चाय बनाई होगी. तब जाकर आपकी जिंदगी की सफलता का आरंभ हुआ होगा. कहीं देर हो रही होगी जाने में, ऑटो वाले ने वक्त से पहुंचाया होगा.

कभी किसी चपरासी ने हो सकता है बताया हो, नहीं साहब सिरिंज ऐसे आसानी से लग सकती है. कितने कितने लोग होंगे, जिन्होंने आपकी जिंदगी को बनाया होगा. एक प्रकार से आप कर्ज लेकर आ रहे हैं. ये ठीक भी था. मगर अब कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी है आपकी.

कहां से मिलीं आपको सुविधाएं. किसी गांव वाले की बस का बजट, किसी पिछड़े इलाके के स्कूल का बजट यहां डायवर्ट किया होगा. किसी और का हक आपको. ताकि डॉक्टरों को बेस्ट सुविधाएं मिलें. ये अनिवार्य रहा होगा. क्योंकि देश को आपकी जरूरत है. मगर ये भी आपको याद रखना चाहिए कि समाज ने कितना कुछ दिया है. हमेशा याद रहे कि मेरे सामने आए हर व्यक्ति ने कुछ योगदान दिया होगा, तब मैं यहां तक पहुंचा हूं. मुझ पर उसका अधिकार है.

Advertisement

मैं नहीं जानता जो यहां से पढ़कर विदेश चले गए, उन तक ये बात पहुंचेगी या नहीं. हम नहीं चाहते कोई पिछड़ेपन में रहे. कभी हम भी छुट्टी मनाने जाते हैं साथियों के साथ. मरीज तब भी होते हैं. मगर ये ब्रेक बनता है. कभी ऐसा भी ब्रेक रहे कि हम डॉक्टर साथी पांच छह दिन जंगलों में, पिछड़े गांवों में जाएं और वहां मरीजों का इलाज करें. उन्हें स्वस्थ जीवन की सलाह दें.

पहले गांव में एक वैद्यराज होते थे और गांव स्वस्थ होता था. आज आंख का डॉक्टर अलग है. कान का अलग है. वो दिन भी दूर नहीं जब बांई आंख वाला डॉक्टर एक होगा. दांयी आंख का दूसरा होगा. लेकिन अब इतने डॉक्टरों के बाद भी लोगों के स्वास्थ पर सवालिया निशान लगे रहते हैं.

टेक्नॉलजी इतनी बढ़ रही है. आप बताइए, रोबॉट ही ऑपरेशन करेगा. प्रोग्रामिंग होगी. जो कांटना छांटना है, कर देगा. बाद में पैरा मेडिकल स्टाफ देखता रहेगा. मैं आपको डरा नहीं रहा हूं. इतनी तेजी से बदलाव आ रहा है.

पुराने जमाने में ऋषियों की तस्वीर के पीछे ऑरा होता था. हमें लगता था कि अच्छी डिजाइनिंग के लिए करते होंगे. मगर आज साइंस कहती है कि औरा मेडिकल साइंस के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है. औरा साइंस मेडिकल साइंस से अभी पूरी तरह नहीं जुड़ा है. मगर साइंटिस्ट इस पर काम कर रहे हैं. अगर इसकी स्वीकृति हो गई तो क्रांति आ जाएगी.

Advertisement

हम क्रांति से डरते नहीं हैं. लेकिन चिंता ये होनी चाहिए कि हम इससे मेल बैठा रहे हैं कि नहीं. कहीं हम पुरानी पोथियों तक तो नहीं अटके हैं. ऐसा रहा तो बदलाव नहीं आ सकता है. हमें रेलेवेंट बने रहना होगा. इसके लिए प्रयास करेंगे तो बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं.

आप ऐसे इंस्टिट्यूशन के स्टूडेंट हैं, जिसने हिंदुस्तान में अपना एक ट्रेड मार्क बना रखा है. आज देश में कहीं भी अच्छा अस्पताल बनाना हो तो लोग क्या कहते हैं. अरे भाई हमारे यहां एक एम्स बना दो. उन्हें बस इतना पता है कि एम्स बन जाए तो चीजें बेहतर हो जाएं. सोचिए आप कितने भाग्यवान हैं. पेशंट चाहता है यहां भर्ती हो जाए. स्टूडेंट चाहता है कि यहां एडमिशन मिल जाए. एम्स ने देश और दुनिया में अपनी जगह बनाई है. आप बहुत बड़ा सौभाग्य लेकर जा रहे हैं.

मुझे उम्मीद है कि स्वस्थ भारत के सपने को पूरा करने के लिए भारत माता की संतान के रूप में आप अपना सब कुछ देंगे. सबको ह्रद्य से अभिनंदन. मैं आपका साथी हूं. आपके कुछ सुझाव होंगे तो जरूर मुझे बताइए. हम अच्छे रास्ते पर जाने की कोशिश करेंगे.

आपके बीच आने का अवसर मिला. जाने क्यों मिला. न अच्छा पेशंट हूं. भगवान न करें कभी बनूं. डॉक्टर तो मैं हूं ही नहीं. इसलिए बुलाया कि पीएम हूं. देश का दुर्भाग्य है कि हम लोग सब जगह चलते हैं. खैर. अवसर मिला. आभारी हूं. धन्यवाद.

Advertisement
Advertisement