अरुणा शॉनबाग का 18 मई को निधन हो गया. 1973 में केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा के साथ उसी अस्पताल के वार्डब्वॉय सोहनलाल वाल्मीकि ने वहशी की तरह दुष्कर्म किया. उस घटना की वजह से अरुणा 42 साल कोमा में रही और उसी अवस्था में दुनिया से चली गई. अरुणा तो चली गई, लेकिन मीडिया ने उसके अपराधी सोहनलाल वाल्मीकि को उत्तर प्रदेश के परपा गांव में खोज निकाला. गांववाले भी उसके बाद ही सोहनलाल की असलियत से वाकिफ हुए.
अब परपा गांव के लोग सोहनलाल को गांव से बेदखल करने की तैयारी कर रहे हैं. इस मामले को लेकर जल्द ही पंचायत की मीटिंग होने वाली है.
पहला सवाल है कि सोहनलाल को गांव से क्यों बेदखल किया जाना चाहिए? दूसरा सवाल है कि सोहनलाल को गांव से क्यों नहीं बेदलखल किया जाना चाहिए? आइए इन्हीं बातों को समझने की कोशिश करते हैं -
सोहनलाल को गांव से बेदखल नहीं करना चाहिए-
1. इंसाफ का कुदरती तरीका है यही है कि किसी भी शख्स को एक ही अपराध के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती. सोहनलाल जेल में अपनी सजा काट चुका है. ऐसे में उसे फिर से कोई सजा देने का मतलब नहीं बनता.
2. अदालत ने कानून के हिसाब से सोहनलाल को सजा सुनाई. सोहनलाल ने सजा भी काट ली है. अब फिर से सोहनलाल को सजा देना कानून हाथ में लेने जैसा या अदालत की तौहीन करने वाली बात होगी.
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