'मेरी बेटी तो कंप्यूटर पर ही खेलती रहती है. बहुत जानती है कंप्यूटर के बारे में.'
'मेरा बच्चा तो मोबाइल से खेलता रहता है. सब वही सेट करता है. मुझे तो उतना पता भी नहीं.'
'मेरा बेटा तो फेसबुक पर ही रहता है. खाना न मिले तो भी चलेगा, मगर फेसबुक के बिना नहीं चलने वाला.'
मुमकिन है आप अपने बच्चों की इसी अंदाज में तारीफ करते हों- और ये देख कर खुश होते हों. लेकिन दुनिया के ज्यादातर पेशेवर ऐसी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते.
फिर क्या सोचते हैं?
ऐसे ज्यादातर पेशेवरों की पसंद 'स्मार्ट क्लास' में नहीं, बल्कि ब्लैक बोर्ड पर पढ़ाई होती है. वे अपने बच्चों को ऐसे स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं जहां परंपरागत तरीके से पढ़ाई होती हो. खेल-कूद, क्रिएटिव कार्यकलाप और पढ़ाई के ट्रेडिशनल तरीके अपनाए जाते हों.
खुद तो ये गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के लिए एक से बढ़ कर एक गैजेट्स और एप्लीकेशन बनाते हैं लेकिन अपने बच्चों को इन सबसे दूर रखते हैं. कुछ ऐसे स्कूल हैं जहां 12 साल से कम उम्र तक के बच्चों को मोबाइल, टैबलेट, कंप्यूटर और इंटरनेट से दूर रखा जाता है .
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