राजनीति में जीत-हार मायने रखती है या चुनौती? अगर जीत-हार से फर्क पड़ता तो अरविंद केजरीवाल बनारस में नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं देते. कुमार विश्वास और स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ खड़े नहीं होते. या फिर, सुषमा स्वराज बेल्लारी में सोनिया के खिलाफ चुनाव नहीं लड़तीं.
बिहार में कांग्रेस नेताओं के दिमाग में यही सवाल लगातार गूंज रहा है. हालांकि, फैसला पहले आलाकमान के हाथ में है और फिर जनता के हाथ में.
गठबंधन तो जरूरी था
बिहार में कांग्रेस को अपनी भूमिका की तलाश थी. अचानक परिस्थियां ऐसी बनीं कि मुंहमांगी मुराद मिल गई. कांग्रेस ने नीतीश कुमार को नेता घोषित कराकर उन पर अहसान किया. सोनिया गांधी के मुकाबले राहुल गांधी वैसे भी लालू प्रसाद को कम पसंद करते नजर आते हैं. दागी नेताओं को बचाने वाले ऑर्डिनेंस की कॉपी को फाड़ना इसका सबूत है.
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