बिहार विधान सभा चुनाव में अभी थोड़ा वक्त है. उससे पहले विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में भी मुकाबला दो गठबंधनों के बीच ही होगा.
कार्यकर्ताओं की चुनौतियां
पहले नीतीश और लालू ने हाथ मिलाया. फिर लालू ने जहर भी पी लिया. अब दिलों की दूरियां मिटीं या नहीं ये न तो मालूम है और न सियासत में मायने रखती है.
क्या स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ भी ऐसा ही है? शायद नहीं. कार्यकर्ताओं के लिए 20 साल मोर्च पर एक दूसरे के खिलाफ डटे रहना और अब सारी बातें भूल कर साथ देना बहुत मुश्किल होगा. यही गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है. ऐसी चुनौतियों से कांग्रेस के मुकाबले आरजेडी और जेडीयू को कहीं अधिक जूझना है. बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं को एक करना, दुश्मनी की जगह दोस्ती का अहसास कराना और पूरे मन से काम करने के लिए मोटिवेट करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा होगा.
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