नीतीश कुमार ने अब अपना स्टैंड बदल लिया है. जेडीयू विधायकों को बुलाकर नीतीश ने अपना नया स्टैंड साफ तौर पर जाहिर कर दिया है.
कबीर नहीं, अब तुलसीदास
लगता है बिहार के मौजूदा सियासी हालात से कबीर की फिलॉसफी मेल नहीं खा रही है. हाल के दिनों में जब भी जनता परिवार या लालू प्रसाद के साथ गठबंधन की बात चलती, नीतीश कबीर का जिक्र जरूर करते, 'धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए.'
लेकिन अब उन्हें देर ही नहीं अंधेर जैसा भी लगने लगा है. शायद इसीलिए नीतीश कुमार ने तुलसी दास का फॉर्मूला अपनाने का फैसला किया. पार्टी कार्यकर्ताओं से जो बात नीतीश ने कही उसमें तुलसीदास की लाइनें सहज तौर पर प्रासंगिक बन जाती है, 'विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत. बोले राम सकोप तब, भय बिनु होंहि न प्रीत.' विधायकों से बातचीत में नीतीश ने अपना इरादा साफ कर दिया, 'गठबंधन हो तो भी ठीक, न हो तो भी ठीक.'
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