राजनीति में चक्रव्यूह एक ऐसा टर्निंग प्वाइंट है कि चाणक्य भी कई बार अभिमन्यु जैसा फंसा महसूस करने लगें. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुशासन बाबू से लेकर चाणक्य तक कहा जाता रहा है, पर इन दिनों वो खुद ऐसे ही चक्रव्यूह में फंसे नजर आ रहे हैं.
दास्तां-ए-दोस्ती-दुश्मनी
2014 के चुनावों से पहले अगर नीतीश कुमार को मन की बात कहने का मौका मिलता तो वो मोदी जैसा ही होता. हालांकि, नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर यही कहा था कि उनको प्रधानमंत्री बनने की कोई इच्छा नहीं है.
'एनडीए को भी अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए,' यही वो बयान था कि नीतीश को तारीख पर तारीख की तरह बयान पर बयान देने पड़े. बात बढ़ने लगी तो मोदी के मुकाबले नीतीश ने खुद को ज्यादा अनुभवी और बेदाग बताने की कोशिश की. आखिरकार बात इस कदर बिगड़ गई कि एनडीए के साथ जेडीयू का 17 साल पुराना रिश्ता टूट गया. फिर हालात ऐसे बने कि तगड़ी दुश्मनी भुलाकर नीतीश ने लालू से करीब 20 साल बाद दोस्ती का हाथ मिलाया. अब ये नई दोस्ती नीतीश को फायदा कम और नुकसान ज्यादा पहुंचा रही है.
पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें या www.ichowk.in पर जाएं
आईचौक को फेसबुक पर लाइक करें. आप ट्विटर (@iChowk_) पर भी फॉलो कर सकते हैं.