दिल्ली चुनाव को लेकर मीडिया सर्वे भले आम आदमी पार्टी के पक्ष में हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें सिरे से गलत बता रहे हैं . मोदी की बात सही साबित करने के लिए उनके कमांडर इन चीफ अमित शाह ने सारी ताकत झोंक दी है. चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में बीजेपी ने अपने सभी 70 उम्मीदवारों को रोड शो करने का हुक्म दिया है. सभी उम्मीदवारों को 11 से शाम चार के बीच ज्यादा से ज्यादा इलाकों में पहुंचने को कहा गया है. तब तक जब तक आयोग इसकी इजाजत देता हो. आखिरी वक्त तक की ये हड़बड़ी शायद नहीं होती, यदि भाजपा इन 10 बातों पर गौर कर लेती-
1. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी ने मोदी लहर को आजमाया और सफल रही. दिल्ली में भी बीजेपी को लगा कि यूं ही काम चल जाएगा. जब केजरीवाल ने एक-एक कर बीजेपी नेताओं को टारगेट करना शुरू किया तो उसे एक मजबूत चेहरे की जरूरत महसूस हुई. हर्षवर्धन की छवि अच्छी थी लेकिन बीजेपी को इस बार उन पर भरोसा नहीं हुआ. पिछले चुनाव में उन्हें उनके फेस वैल्यू के भरोसे ही मैदान में उतारा गया था – और सीटें बटोरने के मामले में तो कम से कम वे अव्वल भी रहे. यदि उन पर ही दाव खेला जाता तो ज्यादा कारगर हो सकता था.
2. केजरीवाल की काट के तौर पर किरण बेदी अच्छा उम्मीदवार साबित हो सकती थीं, पर मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उन्हें प्रोजेक्ट करने में पार्टी ने काफी देर कर दी. बीजेपी को इसका पूरा फायदा नहीं मिल पाया. बीजेपी ने मास्टर स्ट्रोक खेला जरूर, मगर काफी देर से.
3. किरण बेदी को लाने से पहले बीजेपी ने सीनियर नेताओं को भरोसे में नहीं लिया. यहां तक कि उनकी छोटी-छोटी मांगों को भी नजरअंदाज किया. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय को टिकट तक नहीं दिया जिससे उनके समर्थक कई दिन तक हंगामा मचाते रहे. टिकट बंटवारे को लेकर और भी कई नेता नेतृत्व से नाराज रहे. ये कलह सार्वजनिक होने से रोकी जाती तो मुकाबला कुछ और होता.
4. किरण बेदी ने बाकायदा पुलिस अफसर की ट्रेनिंग ली थी और उसके बाद ही फील्ड में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. मगर जब वो राजनीति में आईं तो ठीक से उनका इंडक्शन भी नहीं हो सका. अगर बीजेपी उन्हें पॉलिटिक्स की भी थोड़ी ट्रेनिंग दे देती तो बात और होती. ‘हमें थानेदार नहीं, नेता चाहिए’ जैसी उठती आवाजों को बीजेपी नेतृत्व ने जबरन दबा दिया. अगर इन बातों पर ध्यान दिया गया होता तो शायद किरण बेदी भी लोगों से कनेक्ट हो पातीं – और संवाद स्थापित करने में सबको सहूलियत होती.
5. किरण बेदी न तो अपने वोटर से सीधे-सीधे जुड़ पाईं और न ही कार्यकर्ताओं का दिल जीत पाईं. उनकी प्रचार टीम के नरेंद्र टंडन के इस्तीफे के बाद भले ही उनकी घर वापसी हो गई हो, लेकिन सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था ये तो नहीं कहा जा सकता.
6. बीजेपी की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार दिल्ली को लेकर अपना एजेंडा तो बताती रहीं, लेकिन वोट मोदी के नाम पर मांगती रहीं. ये बात केजरीवाल ब्रांड के आगे थोड़ा फीका नजर आया. किरण बेदी को खुद अपने ही ब्रांड का कोई खास फायदा नहीं मिल पाया. दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा बड़ा मुद्दा रहा, लेकिन बीजेपी लोगों को ये बात नहीं समझा पाई कि इसके लिए किरण बेदी से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता.
7. दिल्ली में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा था, है और शायद आगे भी रहेगा [जब तक कोई ठोस उपाय न हो]. बीजेपी ने इसे हल्के में लिया, जबकि केजरीवाल लोगों को भ्रष्टाचार का मुद्दा और उसके लिए लोकपाल की जरूरत के बारे में लगातार समझाते रहे. घोषणा पत्र की जगह बीजेपी ने विजन डॉक्युमेंट पेश तो किया लेकिन भ्रष्टाचार के नाम पर रस्म अदायगी नजर आई. खासकर तब जबकि प्रतिद्वंद्वी आप जोर शोर से बताती रही कि वह भ्रष्टाचार का खात्मा कर देगी.
8. केजरीवाल को टारगेट करने के लिए बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की फंडिंग में घपले की बात को हवा दी. बीजेपी शायद भूल गई कि केजरीवाल को घेरने के दूसरे तमाम तरीके हो सकते हैं मगर इस तरह की बातें हवा हवाई ही साबित होंगी. बीजेपी ने यह भी समझने की कोशिश नहीं की कि केजरीवाल किस तरह किरण बेदी पर सीधे हमले के बजाए उन्हें मिस-फिट बताते रहे.
9. बीजेपी को लगा कि अगर मोदी लहर थोड़ी फीकी पड़ी तो किरण बेदी की छवि सारी कसर पूरी कर देगी. इससे बीजेपी ने अपने पारंपरिक मध्यवर्गीय वोट बैंक को तो बचा लिया, लेकिन एक बड़ा तबका काफी पीछे छूट गया. झुग्गी-झोपड़ी वालों या आप के डेडिकेटेड वोट बैंक में बीजेपी सेंध नहीं लगा पाई. अगर उन मतदाताओं के बीच बीजेपी थोड़ी भी पैठ बना लेती तो बात शायद इतनी न बिगड़ती.
10. लोक सभा चुनावों में दिल्ली की सभी सातों सीटें झटकने के बावजूद केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने विधानसभा चुनाव कराने में देर की. बीजेपी को ये बात भले समझ में न आई हो मगर आप ने पहले ही भांप लिया था. लोकसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेते हुए आप ने दिल्ली पर फोकस किया. आप हरियाणा चुनाव से दूर रही लेकिन बीजेपी को इसकी भनक तक न लगी. बीजेपी अगर वक्त रहते चेत जाती तो बात और होती.