भारत में धर्मनिरपेक्षता की जड़ें बेहद मजबूत हैं. अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन भी जाते हैं तो वे इसे नहीं बदल सकेंगे. बल्कि वे खुद ही बदलकर सेकुलर हो जाएंगे. ऐसा हमने पहले भी देखा है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और बीजेपी के अन्य नेताओं ने अहम पद पाने के बाद धर्मनिरपेक्षता का पालन किया. मुझे विश्वास है कि अगर मोदी पीएम बनते हैं तो वो अपना एजेंडा लागू करने सफल नहीं होंगे बल्कि वे सेकुलर एजेंडे पर चलने के लिए मजबूर हो जाएंगे. ऐसा कहना है कि दिल्ली के फतेहपुरी मस्जिद के इमाम डॉक्टर मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद का.
फतेहपुरी मस्जिद के इमाम जमियत उलेमा-ए-हिंद के नेता महमूद मदनी के उस बयान से सहमत नहीं हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस मुस्लिमों का वोट पाने के लिए मोदी का डर पैदा दिखा रही है.
उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि महमूद मदनी ने सही कहा. मैंने ऐसा नहीं सुना कि किसी कांग्रेसी नेता ने नरेंद्र मोदी का डर दिखाकर फायदा उठाने की कोशिश की. अगर मदनी जी के पास ऐसी जानकारी है तो किसी भी राजनीतिक दल को ऐसा नहीं करना चाहिए. सबसे पहले मुझे नहीं लगता कि मोदी कभी इस देश के पीएम बन सकते हैं. मेरे विचार से यह नामुमकिन है और देश के ज्यादातर मुस्लिम भी ऐसा ही सोचते हैं. किसी भी धर्मनिरपेक्ष पार्टी को मोदी की छवि का फायदा नहीं उठाना चाहिए और न ही इसका इस्तेमाल मुसलमानों को डराने के लिए होना चाहिए. मुस्लिम समुदाय अपने वोट के बारे में सोचने के लिए पूरी तरह से आजाद है.'
मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद ने कहा, 'कांग्रेस या फिर कोई भी पार्टी हो. उसे मुसलमानों के लिए कुछ करना पड़ेगा. खाली जुबानी डेमोक्रेसी से कुछ नहीं होगा. मुस्लिम समुदाय अच्छी तरह से जानता है कि किस पार्टी ने उसके लिए क्या किया है. सिर्फ नरेंद्र मोदी का हौव्वा दिखाकर अगर कोई सारे वोट बटोरने के सपने देखता है तो यह बेहद मुश्किल है.'
कांग्रेस पर निशाना साधते उन्होंने कहा, 'मुस्लिमों की हालत दलितों से बदतर करने के लिए जो कांग्रेस ने मुद्दे खड़े किए उसका समाधान खुद कांग्रेस निकाले. तभी मुसलमान कांग्रेस का साथ देगा. मोदी के डर से कांग्रेस को वोट मिलने वाला नहीं.'