मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के बाद बिहार की राजनीति काफी तेजी से बदली है. मोदी मंत्रिमंडल में जेडीयू का कोई मंत्री शामिल नहीं हुआ क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक मंत्री बनाए जाने को सांकेतिक बताया और फैसला किया कि भविष्य में भी केंद्र सरकार में जेडीयू का कोई मंत्री हिस्सा नहीं लेगा. इसके ठीक बाद बिहार में भी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ जिसमें जेडीयू के 8 नेता मंत्री बनाए गए जबकि बीजेपी का कोई विधायक इसमें शामिल नहीं किया गया.
अब बिहार में इफ्तार की राजनीति चल पड़ी है जिसमें बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं दिख रहा. यहां अलग अलग पार्टियां इफ्तार कर रही हैं जिसमें विरोधी गठबंधन की राजनीति भी परवान चढ़ती दिख रही है. कई नेता भले इन आयोजनों को राजनीति से अलग बता रहे हों लेकिन अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार की इफ्तार पार्टी कुछ अलग जरूर है.
इधर, बिहार में बीजेपी के सहयोग से सरकार चला रही जेडीयू ने भी रविवार को इफ्तार पार्टी दी जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतनराम मांझी तो जरूर शामिल हुए लेकिन बीजेपी का कोई भी नेता या विधायक नहीं पहुंचा. इससे कई सवालों को बल मिला, बीजेपी के नेता भले ही इसका राजनीतिक मतलब न निकाले जाने की बात कह रहे हों लेकिन रिश्तों में 'तल्खी' जरूर दिख रही है. दूसरी ओर बीजेपी के नेता के बयानों से उलट कांग्रेस के नेता प्रेमचंद मिश्रा ने कहा कि बीजेपी और जेडीयू के एक-दूसरे की इफ्तार पार्टी में नहीं जाना एनडीए की स्थिति को स्पष्ट कर रहा है.
एकतरफ जेडीयू की इफ्तार पार्टी में बीजेपी नेताओं का न जाना और दूसरी ओर राबड़ी देवी का यह बयान कि नीतीश कुमार महागठबंधन में फिर शामिल होते हैं तो उन्हें एतराज नहीं, इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. सियासी गलियारों में यह खबर चल पड़ी है कि अगले साल विधानसभा चुनाव है जिसमें जेडीयू और आरजेडी के गठजोड़ संभव हैं. इस तर्क को मजबूती देने के लिए लोग रघुवंश प्रसाद सिंह के बयान को भी देख रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव ने लिखित रूप में यह थोड़े न दिया है कि नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल नहीं हो सकते. रघुवंश सिंह ने यह भी कहा है कि बीजेपी को हराने के लिए सभी दलों को एक साथ आना चाहिए.
गौरतलब है कि जेडीयू और बीजेपी के बीच तल्खी की शुरुआत तब शुरू हुई, जब नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह के कुछ घंटे पहले मुख्यमंत्री ने जेडीयू को शामिल करने से मना कर दिया. एनडीए की ओर से मात्र एक मंत्री बनाए जाने को नीतीश कुमार ने सांकेतिक भागीदारी बताया और बीजेपी के प्रस्ताव को ठुकराते हुए मंत्रिमंडल में शाामिल नहीं होने की घोषणा की. इसके दो दिन बाद ही बिहार में नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, जिसमें बीजेपी के एक भी विधायक को शामिल नहीं किया गया.
जेडीयू ने इसके बाद साफ कर दिया कि भविष्य में भी वह मोदी सरकार का हिस्सा नहीं बनेगी. बहरहाल, रमजान में बिहार में जो सियासी तस्वीर उभर रही है, उसका संकेत पार्टियों के पाला बदलने का है जिसमें नीतीश कुमार किस धड़े से जुड़ेंगे, अभी यह साफ नहीं है. हालांकि जेडीयू से लेकर बीजेपी तक कहती दिख रही हैं कि उनका गठबंधन मजबूत है और आगे भी वे एनडीए का हिस्सा बने रहेंगे.